त्वरित टिप्पणी-
अशोक साहू जर्नलिस्ट
कवर्धा- छत्तीसगढ़ का कबीरधाम जिला शांति का टापू दो मायने में है। पहला यह कि यह पूरा जिला धार्मिक,अध्यात्मिक और पर्यटन का केन्द्र है। यहां पुरात्व का महत्व स्थल भी है। सतपुड़ा-मैकल पर्वत का विशाल श्रृंख्ला है। भोरमदेव अभ्यारण है। दूसरा मायने यह है कि इन स्थलों और मैकल पर्वत श्रृख्ला में अति पिछ़ड़ी जाति बैगा निवास करती है। इस जनजाती को भारत वर्ष के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है। वैसे तो छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलो में पांच पिछड़ी जनजाति निवास करती है। उनकी सादगी, रहन-सहन, खान-पान,वेश-भूषा और उनकी विनम्रता व्यवहार हम बस से जूदा और अलग है। इस पूरे मायने में कबीरधाम जिला शांति का टापू की संज्ञा तो तो यह भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। इन वनांचल में बाहरी लोगों की आमद भी बढ़ी है।
अब बात हो रही है उन बैगाओं की उन्नति,प्रगति और उनकी शिक्षा की। निःसंदेह राज्य बनने के बाद बैगाओं के रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आया पर उनकी संस्कृति सुरक्षित है। बैगाओं का बरगलाने और उनके उकसानें में कई लोगों उनका उपयोग करते आए है। बैगाआ का ढाल बनाकर उनके पिछे राजनीति भी करते आए है। यह भी अछूता नहीं हैं। 05 जुलाई 2018 को बैगाओं का राजनीति शिकार होते भी देखा गया है। निःसंदेह उनकी परेशानियां और उनकी समस्याएं से वह समुदाय जुझ रहा है पर बैगा इतने भोले भाले है कि है उनका कहां राजनीति उपयोग हो रहा है उसे भी नहीं पता।
कबीरधाम जिले के पंडरिया विकासखण्ड के टांटीबहरा जो नागाडबरा, माठपुर के आंश्रित गांव है। उनके अलावा आसपास के 11 गाव और भी शामिल है,जो जिन्होने शासन-प्रशासन के अमलों पर उनकी यातना और प्रताड़ना के शिकार का आरोप लगाया गया है। बैगा जाति ने नामजद भी शिकायत की है। उनकी समस्याएं सही भी हो सकती है। उन भोलेभाले बैगाओं के जो ढाल बना कर राजनीति कर रहे है उनका क्या यह भी एक बड़ा सवाल है। बैगाओं को भीड़ में नेताओं ने अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश की है। जिला कलेक्टर श्री अवनिश शरण और पुलिस कप्तान डॉ लाल उमेद सिंह ने अपने चेम्बर से बाहर आकर बैगाओं से मुलाकात भी की। उनकी समस्ययाओं से अवगत भी हुए। समाधान करने और उनके समस्याओं का दूर करने के प्रयास की जिम्मेदारी भी ली। प्रशासन ने हर पहलुओं को जांच कराने की बात भी की। इसके लिए प्रशासन धन्यवाद के पात्र भी है।
अंत में एक बड़ा सवाल यह है कि बैगाओं ने प्रशासन को आवेदन दिया है, उन बैगाओं का हस्ताक्षर भी है। बैगा चतुरसिंह,बिरसू बैगा, लघन बैगा, नानसिंह बैगा, नाथुरा बैगा, सुकसीन, प्यारे लाल बैगा, के बैगा, छतर सिंह बैगा, रतन सिंह बैगा शिवप्रसाद बैगा और दस्तखत की श्रृख्ला में चार ऐसे बैगा है जिन्होने अंग्रेजी में हस्ताक्षर किया है। क्या वहां कि बैगा इतने पढेलिखें है वह अब अंग्रेजी में अपना नाम लिख रहे है यां उनके नामों का दुरूपयोग हो रहा है। साहब जी यह भी जांच का विषय है।
अब बैगा कब से करने लगे अग्रेजी में दस्तखत यह भी जांच का विषय है साहब जी।