पूर्वी राज्यों में धान की पड़त भूमि में दलहन-तिलहन उत्पादन की रणनीति बनाने कार्यशाला आयोजित
देश के आठ राज्यों के प्रतिनिधि हुए शामिल
रायपुर : मुख्य सचिव श्री अजय सिंह ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में धान की फसल के बाद पड़ती भूमि पर रबी में दलहन और तिलहन फसलें उगाये जाने की असीम संभावनाएं हैं। विगत दो वर्षाें से इस पड़ती भूमि पर रबी में दलहन और तिलहन फसलें उगाये जाने के अच्छे परिणाम मिले हैं। इस योजना के तहत पिछले वर्ष राज्य के पांच जिलों के पांच सौ गांवों को लिया गया था जिसका विस्तार इस वर्ष नौ जिलों के नौ सौ गांवों में किया जा रहा है। श्री सिंह ने उम्मीद जताई कि इस योजना के आशानुकूल परिणाम प्राप्त होंगे और छत्तीसगढ़ दलहन और तिलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा। श्री सिह आज यहां भारत सरकार के कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग तथा छत्तीसगढ़ शासन के कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘पूर्वी भारत में चावल की पड़त भूमि पर दलहन एवं तिलहन उत्पादन की रणनीति’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ कर रहे थे। इस कार्यशाला में पूर्वी भारत के आठ राज्यों – असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखण्ड़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि शामिल हुए। शुभारंभ समारोह को छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन आयुक्त श्री सुनिल कुजूर, भारत सरकार के कृषि आयुक्त डॉ. एस.के. मल्होत्रा, भारत सरकार के संयुक्त सचिव कृषि श्री बी. राजेन्द्रन, छत्तीसगढ़ शासन के सचिव कृषि श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील तथा संचालक कृषि श्री एम.एस. केरकेट्टा ने भी संबोधित किया।
कृषि उत्पादन आयुक्त श्री सुनिल कुजूर ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पिछले दो वर्षाें में टी.आर.एफ.ए. कार्यक्रम के तहत दलहन और तिलहन के उत्पादन मंे बढ़ोतरी हुई है। यह एक अच्छा संकेत है लेकिन उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ही साथ किसानों के लिए बाजार की व्यवस्था किया जाना भी आवश्यक है जिससे उत्पादन बढ़ने पर भी उन्हें अपनी फसल का सही मूल्य मिल सके। भारत सरकार के संयुक्त सचिव कृषि श्री बी. राजेन्द्रन ने कहा कि टी.आर.एफ.ए. योजना के तहत पूर्वी राज्यों में सुनियोजित तरीके से जिलों, विकासखण्डों और गांवों का चयन कर इसका क्रियान्वयन किया जा रहा है। उन्होंने इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। भारत सरकार के कृषि आयुक्त डॉ. एस.के मल्होत्रा ने कहा कि इस वर्ष देश में 285 मिलियन टन फसल उत्पादन होने का अनुमान है जिसमें 25 मिलियन टन दलहन और 31 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन अनुमानित है। उन्होंने कहा कि टी.आर.एफ.ए. योजना के अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। इस योजना के तहत दस लाख टन दलहन और तिलहन का अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त हुआ है। दलहन और तिलहन फसलों का अतिरिक्त उत्पादन होने के साथ ही मिट्टी का स्वास्थ्य और उर्वरता में वृद्धि भी दर्ज की गई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धान की फसल के बाद लगभग 60 प्रतिशत भूमि खाली रहती है। इस पर दलहन और तिलहन फसलों के अलावा अन्य फसलें भी ली जानी चाहिए। उन्होंने आवारा पशुओं द्वारा फसलों की चराई को विकराल समस्या बताते हुए इस पर नियंत्रण लगाये जाने की वकालत की। संचालक कृषि श्री एम.एस. केरकेट्टा ने छत्तीसगढ़ द्वारा कृषि के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों की जानकारी देते हुए टी.आर.एफ.ए. योजना के संबंध में आधार वक्तव्य दिया। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित दो पुस्तिकाओं तथा आई.सी.ए.आर.-आई.आई.पी.आर. कानपुर द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका का विमोचन भी किया गया।
उल्लेखनीय है कि भारत के पूर्वी राज्यों में लगभग 85 लाख हेक्टेयर भूमि ऐसी है जो खरीफ में धान की फसल लेने के बाद वर्ष के शेष समय में पड़ती पड़ी रहती है। इस भूमि का सदुपयोग करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2016-17 से ‘‘टारगेटिंग राइस फैलो एरिया (टी.आर.एफ.ए)’’ उपयोजना प्रारंभ की गई जिसके तहत प्रथम वर्ष में छह राज्यों के 15 जिलों के 15 सौ गांवों में धान के बाद दलहन एवं तिलहन फसल लेने का कार्यक्रम शुरू किया गया। कार्यक्रम की सफलता से उत्साहित होकर वर्ष 2017-18 में यह योजना 35 जिलों के 35 सौ गांवों में संचालित की गई। इस वर्ष यह योजना पूर्वी भारत के आठ राज्यों के 50 जिलों के पांच हजार गांवों में क्रियान्वित की जा रही है। छत्तीसगढ़ में यह योजना गरियाबंद, रायगढ़, राजनांदगांव, कांकेर, कोण्डगांव, सरगुजा, बिलासपुर, बलोदाबाजार और बस्तर जिलों मंे क्रियान्वित की जा रहीं है। वर्ष 2020 तक इस योजना के तहत पूर्वी राज्यों में 25 लाख टन दलहन और सात लाख टन तिलहन के अतिरिक्त उत्पादन संभावित है।