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नवरात्रि, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

शरद ऋतु के आश्विन माह में आने के कारण इन्हें शारदीय नवरात्रों का नाम दिया गया है. नवरात्रि में मां भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है।

वैसे तो मां दुर्गा यानि देवी की पूजा का पर्व साल में चार बार आता है लेकिन साल में दो बार ही मुख्य रूप से नवरात्रि पूजा की जाती है. प्रथम नवरात्रि चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होते हैं और रामनवमी तक चलती है. वहीं शारदीय नवरात्र आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर विजयदशमी के दिन तक चलती है. इन्हें महानवरात्रि भी बोला जाता है. दोनों ही नवरात्रों में देवी का पूजन नवदुर्गा के रूप में किया जाता है. दोनों ही नवरात्रों में पूजा विधि लगभग समान रहती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के बाद दशहरा यानि विजयदशमी का पर्व आता है.

शरद ऋतु के आश्विन माह में आने के कारण इन्हें शारदीय नवरात्रों का नाम दिया गया है. नवरात्रि में मां भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह नवरात्रि सितम्बर या अक्टूबर में आते हैं. शारदीय नवरात्रों का समापन दशमी तिथि को विजयदशमी के रूप में माना कर किया जाता है.

साल 2018 में शारदीय (आश्विन) नवरात्र व्रत 10 अक्टूबर से शुरू होंगे और 19 अक्टूबर तक रहेंगें. नवरात्र में सबसे पहले व्रत का संकल्प लेना चाहिए. क्योंकि लोग अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या पूरे नौ के नौ दिन उपवास रखते हैं. इसलिए संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जिस प्रकार आपको उपवास रखना है. इसके बाद ही घट स्थापना की प्रक्रिया आरंभ की जाती है.

शारदीय नवरात्रि: कलश स्थापना और पूजा विधि

कलश स्थापना से पहले अच्छे से पूजा और स्थापना स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें. व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है. दरअसल हिंदूओं में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर देवी जी और गणेश गौरी जी और नवग्रह स्थापित करें. उसके साथ जमीन पर जहां जौं बोया वहां कलश स्थापित करें. कलश पर मौली बांध दें और उस पर स्वस्तिक बना दे. कलश में 1 रुपए का सिक्का हल्दी की गांठ और दूर्वा डाल दें और पांच प्रकार के पत्तों से सजाएं.

कलश को सिकोरे से ढक दें और उसको चांवल से भर दें. इसके बाद उस पर नारियल स्थापित करें. कलश को भगवान विष्णु जी का ही रूप माना जाता है. पूजन में समस्त देवी-देवताओं का आह्वान करें. मिट्टी की वेदी पर सतनज और जौ बीजे जाते हैं, जिन्हें दशमी तिथि को पारण के समय काटा जाता है. नौ दिन ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय अखंड जोत जलती रहनी चाहिए.

नवरात्रि की पहली तिथि में दुर्गा मां के प्रारूप मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है. इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा मां का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं.

शारदीय नवरात्रि 2018 कलश स्थापना मुहूर्त

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 09:16 (09 अक्टूबर 2018)

घट स्थापना तिथि और मुहूर्त- प्रातः 06:22 से 12:25 दोपहर (10 अक्टूबर 2018)

प्रतिपदा तिथि समाप्त- 07:25 (10 अक्टूबर 2018)

10 अक्टूबर (बुधवार) 2018: घट स्थापन और मां शैलपुत्री पूजा, मां ब्रह्मचारिणी पूजा

11 अक्टूबर (गुरुवार) 2018: मां चंद्रघंटा पूजा

12 अक्टूबर (शुक्रवार) 2018: मां कुष्मांडा पूजा

13 अक्टूबर (शनिवार) 2018: मां स्कंदमाता पूजा

14 अक्टूबरर (रविवार) 2018: सरस्वती आह्वाहन

15 अक्टूबर (सोमवार) 2018: मां कात्यायनी पूजा

16 अक्टूबर (मंगलवार) 2018: मां कालरात्रि पूजा

17 अक्टूबर (बुधवार) 2018: मां महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महानवमी

18 अक्टूबर (गुरुवार) 2018: दुर्गा नवमी

19 अक्टूबर (शुक्रवार) 2018: नवरात्र पारायण/ विजय दशमी

नवरात्रों में मां भगवती की आराधना दुर्गा सप्तशती से की जाती है, लेकिन अगर समय की कमी है तो भगवान शिव रचित सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ और सिद्धकुंजिका अत्यंत ही प्रभाव शाली और दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाले है.

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