कबीरधामः वनांचल के दो बड़े कुई और तरेगांव जंगल ग्राम में कोदो-कुटकी के दो नए प्रसंस्करण इकाई की होगी स्थापना
राज्य शासन ने दी मंजूरी – वनमंत्री ने ग्रामीण जीवन के उत्थान की दिशा में बढ़ता कदम बताया
कवर्धा- राज्य शासन ने कबीरधाम जिले के बैगा व आदिवासी बाहूल्य विकासखण्ड बोड़ला के तरेंगांव जंगल और पंडरिया के कुई में वनांचल और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कोदो-कुटकी (लघु धान्य) के दो नए प्रसंस्करण इकाई की स्थापना करने की मंजूरी दे दी है। छत्तीसगढ़ के वनमंत्री व स्थानीय कवर्धा विधायक श्री मोहम्मद अकबर ने वनांचल में रहने वाले परिवारों के जीवन को उत्थान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृण करने की दिशा में बढ़ते कदम बताया है। उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने सभी वायदे पूरे कर रहे है। जिले के वनांचल क्षेत्रों में कोदो कुटकी की दो नए प्रसंस्करण इकाई की स्थापना होने से जिले की वनांचल क्षेत्र में निवास करने वाले अतिपिछड़ी बैगा जनजाति, आदिवासी और अन्य हजारों परिवारों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। जिले की प्रभारी मंत्री श्रीमती अनिला भेंड़िया ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा राज्य के वनांचल क्षेत्रों के किसानों की आय को दोगूना करने का प्रयास किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने गांव की आर्थिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार की सुराजी ग्राम योजना सहित अन्य नई-नई योजनाओं का उल्लेख वर्ष 2019 की पहली संदेश में किया था। मुख्यमंत्री ने अपने हाल ही में रेडिया वार्ता लोकवाणी कार्यक्रम की पहली कड़ी में गावों की समुचित विकास लिए कुटिर उद्योगों की स्थापना और बढ़ावा देने के लिए जोर भी दिया है।
कलेक्टर श्री अवनीश कुमार शरण ने बताया कि बोड़ला के तरेंगांव जंगल और पंडरिया के कुई में कोदो कुटकी की दो नए प्रंसस्करण केन्द्र की स्थापना की मंजूरी मिल कई है। राज्य शासन के ग्रामीण एवं एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत इसकी स्थापना की जाएगी। वनांचल में रहने वाले किसानों को कार्ययोजना तैयार कर इससे जोड़ा जाएगा।
कृषि विभाग के उपसंचालक व आत्म प्रोजेक्ट के डायरेक्टर श्री नागेश्वर लाल पांडेय ने बताया कि ग्राम तरेगांव और कुई में प्रसंस्करण इकाई की स्थापना के बाद वनांचल क्षेत्र के स्थानीय किसानों को अपनी उत्पाद का प्रसंस्करण करने में आसानी होगी। किसानों को कोदो-कुटकी फसलों के प्रसंस्कृत मूल्य प्रवर्धित उत्पाद स्थानीय बाजार से पांच से छः गुना ज्यादा कवर्धा में 50-60 रूपए और रायपुर तथा अन्य नगरों में 80 से 100 रूपए. में विक्रय किए जाएंगे। वर्तमान में किसानों द्वारा स्थानीय बाजार में 15 से 20 रूपए में बेजा जाता था। इन फसलों के अनाज का उपयोग चांवल के रूप में खाने में स्थानीय वनांचल के कृषकों द्वारा किया जाता है। चांवल के रूप में प्रसंस्करण के लिए हस्तचलित पत्थरअथवा मिट्टी की जांता का उपयोग किया जाता है, जिसमें अत्यधिक श्रम और समय की आवश्यकता होती है। किसानों को अपने स्वयं के उपयोग और बाजार में बेचने में कोदो-कुटकी का चांवल उपार्जन करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। राज्य शासन ने किसानों की इन्ही समस्या और परेशानियों को ध्यान में रखते हुए वनाचंल के इन बड़े ग्राम पंचायत में प्रसंस्करण इकाई की स्थापना मंजूरी दी है।
कोदो-कुटकी कें बीमारियों से लड़ने की शक्ति मौजूद
कोदो-कुटकी पूर्णतः जैविक रूप से उगाए जाने के कारण इस क्षेत्र के इन फसलों के उत्पादों का राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है। जीवन शैली से संबंधित बीमारियां जैसे – मधुमेह, कॉर्डियोवेस्कुलर, ऑस्टियोंपोरोशिस एवं ओबेसिटी जैसी बीमारियों से शहरी सभ्यता की अधिकांश जनसंख्या पीड़ित है। इन सभी बीमारियों से लड़ने की शक्ति इस कोदो-कुटकी आनाज में उपलब्ध है इसलिए इन फसलों के उत्पादों की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। कोदो में (प्रति 100 ग्राम में) प्रोटीन 8.3 प्रतिशत, वसा 1.4 प्रतिशत, फाईबर 9 प्रतिशत, मिनरल 2.6 प्रतिशत, कैल्शियम 26 मिली ग्राम, कुटकी में (प्रति 100 ग्राम में) प्रोटीन 7.7 प्रतिशत, वसा 4.7 प्रतिशत, फाईबर 7.6 प्रतिशत, मिनरल 1.5 प्रतिशत, आयरन 9.3 प्रतिशत, कैल्शियम 17 मिली ग्राम पाए जाते है। इसमें आइसोल्यूसिन, ल्यूसिन, लाइसिन, मेथियोनिन, सिस्टीन, फिनाईलएलानिन, टाइरोसिन, ट्रिप्ओफेन, वेलिन, हिस्टीडिन आवश्यक अमीनो एसिड्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।
कबीरधाम जिले में 8955 हेक्टर में कोदो-कुटकी की खेती
कबीरधाम में लघु धान्य (कोदो-कुटकी) की फसलों की खेती 8955 हेक्टर क्षेत्र में की जाती है, जिसका उत्पादन लगभग 7682 मीट्रिक टन होता है। यह फसलें विशेषकर वनांचल क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के किसानों द्वारा प्राकृतिक रूप से उर्वरक और रसायनों के उपयोग के बिना की जाती है। कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, खनिज तत्व, विटामिंस से भरपूर होने के कारण इन फसलों को ‘‘न्यूट्रीसिरियल्स‘‘ के नाम से जाना जाता है।