कुपोषण और एनीमिया मुक्त कबीरधाम के लिए रोडमैप तैयार
कबीरधाम जिले में गांधी जयंती 2 अक्टूबर से शुरू होगा मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान
ग्राम पंचायतों में मुख्यमंत्री संदेशों का होगा वाचन
कलेक्टर श्री शरण ने कहा-शासन के मंशानुरूप कबीरधाम जिले को कुपोषण और एनीमिया मुक्त बनाने के लिए कार्ययोजना को धरातल पर क्रियान्वयन करें
कवर्धा- छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आगामी 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के 150वीं जन्म दिवस पर शुरू हो रहे प्रदेश व्यापी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की तैयारियां कबीरधाम जिले में लगभग पूरी कर ली गई। इस अभियान के तहत 2 अक्टूबर को जिले के सभी 461 ग्राम पंचायतों में विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा सुपोषण अभियान के संबंध में जारी संदेशों को वाचन किया जाएगा। साथ ही इस दिन जिला स्तर और विकासखण्ड स्तर पर अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जिले के आदिवासी बाहूल बोड़ला, पंडरिया सहित कवर्धा और सहसपुर लोहारा विकासखण्डों में संचालित होने वाली प्रत्येक आंगनबाड़ी बच्चों को और गर्भवती महिलाओं सहित 49 वर्ष की महिलाओं को एनीमिया की बीमारी से मुक्त कराने के लिए रोडमैप कार्ययोजना तैयार कर लिए गए है। जिले के शून्य से 5 वर्ष के आयु वर्ग के कुपोषित एवं एनीमिया पीड़ित बच्चों और 15 से 49 आयु वर्ग की एनीमिया पीड़ित महिलाओं को कुपोषण एवं एनीमिया से मुक्त कराने के लिए संचालित होने वाली मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग को विशेष जिम्मेदारी दी गई है।
कलेक्टर श्री अवनीश कुमार शरण ने जिला कार्यालय के सभा कक्ष में आगमी 2 अक्टूबर से शुरू हो रहे प्रदेश व्यापी मुख्यमंत्री सुपोष अभियान की तैयारियां की समीक्षा करते हुए शासन द्वारा जारी निर्देशों के संबंध में जानकारी दी। बैठक में सभी अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास विभाग, नगरीय निकायों के अधिकारी उपस्थित थे। श्री शरण ने बैठक में जिले स्तर पर तैयार किए गए कार्ययोजनों की समीक्षा करते हुए सुपोण अभियान को प्रभावी बनाने के लिए आंगनबाड़ी बच्चों, गर्भवती महिलाओं के लिए संचालित योजनाओं में विशेष पोषण आहार जोड़ने के लिए कहा, ताकि कुपोषण और एनीमिया से मुक्त कबीरधाम जिला बनाया जा सके। कलेक्टर श्री शरण ने कहा कि 2 अक्टूबर को शुरू हो रहे मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत जिले के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में विशेष रूप से वजन तैयार मनाकर बच्चों का वजन माप तैयार करे। खासकर चिन्हांकित गंभीर और सामान्य कुपोषित बच्चों को विशेष फोकस करें, ताकि योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद उन बच्चों को सामान्य स्थिति में लाने के लिए बेहतर ढ़ंग से क्रियान्वयन किया जा सके। उन्होने जिले के चिल्फी, तरेगांव जंगल और कुकदूर परियोजना के तहत संचालित आंगनबाड़ी बच्चों के लिए, जिले के सभी गर्भवती महिलाओं के लिए तथा कवर्धा एवं सहसपुर लोहारा के आंगनबाड़ी बच्चों को तैयार किए गए कार्ययेजना के तहत विशेष पोषण आहार वितरण करने के के निर्देश दिए। उन्होने गर्भवती महिलाओं सहित 49 वर्ष तक की महिलाओं को स्वास्थ्य परीक्षण कर एनीमिया बीमारी के लिए कॉउसलिंग करें और इससे पीड़ित महिलाओं को पूरक पोषण आहार के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध और आवश्यकता के अनुसार अतिरिक्त पौष्टिक पोषण आहार, स्वास्थ्य अन्य सेवाएं,परामर्श सेवाएं, आयरन पोलिक एसिड, कृमिनाशक गोली प्रदाय की व्यवस्था सुनश्चित करने के निर्देश दिए।
महिला एवं बाल विकास विकास विभाग कार्यक्रम अधिकारी श्री आनंद तिवारी ने बताया कि मुख्यमंत्री सुपोष अभियान के तहत जिले के कुपोषण मुक्त जिला बनाने की तैयारियां कर ली गई है, तथा इस अभियान के तहत बच्चांं का चिन्हांकन भी कर लिए गए है। उन्होने बताया कि जिले में कुल 16693 शून्य से पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चें और 3932 गंभीर कुपोषित चिन्हांकित किए गए है। कुपोषण का मुख्य कारण समय पर संपूर्ण मात्रा में पौष्टिक आहार का न मिल पाना होता है। कुपोषण के कारण बच्चो एवं महिलाओं में रोग प्रतिरोधक की क्षमता में कमी आ जाती है और यही वजह से कुपोषित बच्चें आगे आकर भविष्य में गंभीर बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं एवं मात एवं शिशु मृत्यु के कारण बनते हैं। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथव बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहां तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम है।
कुपोषण के कारण
अधिकतर कुपोषण गर्भावस्था में ही शुरू होता है। मां कुपोषित हो तब शिशु भी कुपोषित हो सकता है। जन्म के उपरांत देरी से या कम स्तनपान कराने से शिशु का पोषण और बढन्त कम होती है। वैसे 6 महीनों तक दूध पीते ठीक-ठाक लगते हैं इसके बाद उनके लिये स्तन पान पर्याप्त नहीं होता। इस वक्त पूरक आहार संबंधी सही सलाह मिलनी चाहिये। इसके बाद सिर्फ दूध काफी नहीं और पतला दूध तो बिलकूल ही हानिकारक है। कम उम्र में शादी और गर्भावस्था तथा दो बच्चों के बीच पर्याप्त अंतराल न होना कुपोषण का कारण है। बुखार, दस्त, खांसी और आदि बीमारियों से शिशु क्षीण हो जाता है और भूख भी कम हो जाती है। इससे कुपोषण और बीमरियां का दुष्ट चक्र शुरू हो जाता है। भारतीय बच्चों के आहार में प्रथिन(प्रोभूजिन) कम होते है, इसलिये स्नायुओं और हड्डियों की वृद्धि कम हो जाती है। तीसरे साल तक बच्चों की वृद्धि का पहला चरण पूर्ण होता है। इस चरण में वृद्धि कम हो तो आगे उसकी अतिपूर्ति नहीं हो पाती।
बच्चों में कुपोषण के पहचान किये जाने की विधि
लाल नीली पट्टी से बच्चों की भुजा नापना कुपोषण पहचानने का एक बिलकुल आसान तरीका है। बच्चे का पोषण और वृद्धि जांचने की चार प्रमुख रीतियां है-भुजाघोर नापना यह सबसे आसान तरीका है। एक से पांच वर्ष के बालकों में यह एकसी लागू होती है। भुजाघेर 13.5 सेमी से अधिक होना अच्छा है। भुजाघेर 11.5 सेमी से कम होने पर कुपोषण समझे। भुजाघेर 11.5 से 13.5 सेमी के बीच हो तो मध्यम कुपोषण समझे। नापने हेतु सामान्य टेप या भुजाघेर पट्टी का इस्तेमान करें।
कुपोषण पहचानने के लिए उम्र के अनुसार ठीक है या नहीं यह देखना सर्वाधिक प्रचलित पद्धति है। लगभग 40 प्रतिशत बच्चे उम्र की अपेक्षा हल्के होते है। कम वजन अर्थात शरीर भार और वृद्धि का कम होना। अपेक्षित वजन हेतु कुछ मापदण्ड है- जन्मजात शिशु 3 किलो, छठे माह के अंत में 6 किलो, एक वर्ष के अंत में 9 किलो, 2 वर्ष के अंत में 12 किलो, 3 वर्ष के अंत में 14 किलो और 4 वर्ष के अंत में 16 किलो है। सिर का घेर भी पोषण पर निर्भर है। जन्म के समय सिर का घेर 34 सेमी होना चाहिए। छठे माह के अंत में 42, पहले वर्ष के अंत में 45, दूसरे साल के अंत में 47, तीसरे साल के अंत में 49, चौथे वर्ष के अंत में 50 सेमी अपेक्षित है। इस मापतोल के अलावा भी कुपोषण के कुछ लक्षण होते है, जैसे हिमाग्लोबीन या रक्तद्रव्य का प्रमाण 12 ग्राम से अधिक हो। लगभग 50 प्रतिशत बालकों में रक्ताल्पता होती है। रक्ताल्पता याने रक्त द्रव्य की कमी होती है।
झलमला में पदस्थ मेडिकल अफसर का वेतन रोकने के निर्देश
कलेक्टर श्री अवनीश कुमार शरण ने आज यहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा करते हुए संस्थागत प्रसव और परिवार नियोजन कार्यक्रमों की प्रगति ठीक नहीं होने पर अप्रसन्नता व्यक्त की। उन्होने जिले के सूदुर वनांचल क्षेत्रो में संचालित स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी लेते हुए झलमला में पदस्थ मेडिकल अफसर श्री शिवेश मानिकपुरी को वेतन रोकने के लिए जिला स्वास्थ्य अधिकारी को निर्देश दिए।