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4000 रु. प्रति क्विंटल बिकने वाली मिर्च अब 600 में बिक रही, 750 किसानों को 50 करोड़ का घाटा

अंबिकापुर- लॉकडाउन से मिर्च की खेती करने वाले किसानों को बहुत घाटा हुआ है। इस साल मिर्च के भाव 6 सौ रुपए क्विंटल मिल रहे हैं, जबकि पिछले साल मिर्च के 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल दाम मिल रहे थे। ऐसे में मिर्च के कम दाम मिलने से किसानों को करीब 50 कराेड़ से अधिक का घाटा हुअा है। जिन किसानों ने कर्ज लेकर खेती की है। वह किसान कर्ज तक चुका नहीं पा रहे। क्योंकि उनकी फसल का खर्च तक नहीं निकल रहा है। करीब 15 दिन पहले जिले के पोडिपा गांव निवासी किसान ने दाम कम होने व कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी।
इस मामले के बाद भास्कर पड़ताल में पता चला कि बलरामपुर जिले के कुसमी और शंकरगढ़ की करीब 25 पंचायतों के 750 से अधिक किसानों ने 2,500 एकड़ में मिर्च की खेती की है। अब फसल तैयार है, जो सिर्फ 6 से 7 रुपए किलो बेचनी पड़ रही है। इससे किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है। कुसमी ब्लाॅक के पहाड़ी इलाकों में पिछले 6 साल से मिर्च की खेती की जा रही है। लेकिन इस साल मिर्च का मंडी में रेट इतना कम हो गया है कि खेत से तोड़ने और बोरों में पैक करने तक का पैसा नहीं मिल रहा है। जबकि पिछले साल मिर्च 40 रुपए किलो तक बिकी थी। अच्छा भाव और उत्पादन को देखकर नए किसानों ने भी मिर्च की खेती शुरू की थी।

मिनतर ने रिश्तेदारों और गांव के लोगों से लिया था कर्ज, पत्नी को सुनाई थी व्यथा
कोरोंधा थाना के प्रधान आरक्षक अजित लाल टोप्पो ने बताया कि मृतक मिनतर की पत्नी ने बयान दिया है कि फांसी लगाने से तीन दिन पहले उसने कहा था कि मिर्च भी सही रेट में नहीं बिक रही। तब वह तनाव में था। पत्नी ने बताया कि खेती के लिए गांव के कुछ लोगों व रिश्तेदारों से कर्ज लिया था, इससे परेशान था। क्योंकि मिर्च बेचने में इतना पैसा नहीं मिल रहा था कि कर्ज चुका सके। उसने केरोसीन पम्प खरीदा था। कर्ज के कारण ही फांसी लगाकर आत्महत्या करने की बात कही है। पुलिस का कहना है कि उसने किन लोगों से कितना कर्ज लिया था। उसकी पत्नी सही जानकारी नहीं दे सकी।

पिछली बार एक एकड़ में 4 लाख की बेची थी मिर्च
एक बार फसल बोने पर किसान 5 मिर्च तोड़ते हैं। एक एकड़ में एक बार तोड़ने पर करीब क्विंटल मिर्च निकलती है। इस तरह 5 बार में करीब 125 क्विंटल का उत्पादन होता है। मिर्च पिछले साल 40 रुपए किलो बिकी थी। इस तरह एकड़ में करीब 4 लाख का मिर्च किसानों ने बेचा था। जबकि सिर्फ एक एकड़ खेत में मिर्च लगाने और फसल को तोड़ने में ही डेढ़ लाख तक खर्च होता है।

इस बार यूपी और झारखंड के व्यापारी नहीं आ रहे गांव
लॉकडाउन के कारण यूपी और झारखंड के व्यापारी सीधे गांव नहीं पहुंच पा रहे हैं। पहले रांची, बनारस, गाजीपुर, महाराष्ट्र सहित दूसरे राज्यों के व्यापारी आते थे और रोज कम से कम 50 पिकअप से मिर्च बाहर जाती थी। अब अम्बिकापुर मंडी ही जा रही है। इसके वजह से उन्हें सही भाव नहीं मिल रहा है।

मंडी और होटल बंद होने से मिर्च की मांग भी बेहद कम
अमरपुर निवासी किसान महेंद्र ने बताया कि फसल बेचने के लिए उत्तरप्रदेश, झारखंड की मंडियों पर निर्भर हैं। लॉकडाउन से मंडी बंद हैं तो होटलों के बंद होने से मिर्च की मांग नहीं के बराबर है। पिछले साल फसल टूटने से पहले एडवांस रकम व्यापारी दे देते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है।

4 रुपए प्रति किलो मिर्च तोड़वाने में आता है खर्च
भुलसीकला निवासी किसान रवि तिर्की ने बताया कि मिर्च की तुड़ाई के लिए चार रुपये प्रति किलो की दर से मजदूरी देना पड़ती है। वहीं एक रुपए बोरा खर्च आता है। फिलहाल बाजार में मिर्च का जो भाव मिल रहा है। उससे फसल की लागत नहीं निकल पा रही है। ऐसे में खेत में ही मिर्च पक कर सड़ रही है।

मिर्च दूसरे राज्यों में भेजने के लिए की जा रही है व्यवस्था
जिला उद्यान अधिकारी पतराम सिंह कंवर का कहना है कि मिर्च का उत्पादन अधिक होने से बाजार में खपत कम है। दूसरे राज्यों में भी भेजने की व्यवस्था की जा रही है। पहली तुड़ाई में किसानों को अपेक्षा के अनुरूप लाभ नहीं हो रहा है। धैर्य रखने की आवश्यकता है।

बलरामपुर के इन गांवों में होती है मिर्च की खेती
नवडीहा, सिविलदाग, करकली, अमरपुर, भुलसीकला, हर्री, चैनपुर, निलकंठपुर, गोपीनगर, कटिमा, लरिमा, रामनगर, मदगूरी, धनेशपुर, सोनपुर, रातासिली, देवरी, जवाहरनगर, करोंधा, जमीरापाठ, गोपातु, सामरी सहित अन्य गांवों में 10-12 सालों से मिर्च की बंपर पैदावार किसान ले रहे हैं। किसान स्थानीय भूस्वामियों से किराए में भी जमीन लेकर मिर्च की खेती कर रहे हैं। एक फसल के लिए प्रति एकड़ पांच से दस हजार रुपए दिए हैं।

cgnewstime

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