ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत आर्थिक कड़ी बनकर उभरीं बैंक सखियाँ
रायपुर- संकट के समय में ही शक्ति की असल परीक्षा होती है। ऐसे ही विश्वव्यापी कोविड संकट में छत्तीसगढ़ की आर्थिक मजबूती के लिए हाथ बंटाकर बैंक सखियों ने खुद को साबित किया है। मनरेगा श्रमिकों का भुगतान हो, बुजुर्गों और निःशक्तों को पेंशन का भुगतान करना हो या किसी ग्रामीण को अपने खाते से रुपए निकलना हो बैंक सखियाँ ने अपनी सेवाएं दी है। इस कारण लॉकडाउन के दौरान ग्रामीणों को न रूपए-पैसे की दिक्कत हुई और न ही उन्हें बैंक की शाखाओं की ओर रुख करना पड़ा। इससे बैंकों में भीड़ को नियंत्रित करने में काफी मदद मिली।
छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों की तरह दुर्ग जिले में भी बैंक सखियों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। यहां 41 महिलाएं बैंक सखी के रूप में काम कर रही हैं। इन्हें पंचायत विभाग की बिहान योजना के तहत बैकिंग लेन-देन संबंधित प्रशिक्षण भी दिया गया है। इनके माध्यम से अब तक 5 करोड़ रुपए का लेनदेन हो चुका है। इन्हांेने पिछले एक महीने में मनरेगा के 4.43 करोड़ रुपए सहित पेंशन और जनधन खाताधारकों को 5 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
ग्राम पंचायत केसरा की 12 वीं तक पढ़ी बैंक सखी अंजू ने ग्रामीणों को जिले में सबसे ज्यादा करीब 48 लाख रुपए का भुगतान किया है। वह जनधन योजना के एक हजार 695 खाता धारकों को 10.59 लाख रूपए, बैक जमा लेन-देन के तहत 9 लाख रुपए, मनरेगा के तहत श्रमिकों को भुगतान करीब 27 लाख रूपए, पेंशन के 93 हितग्राहियों को 65 हजार रूपए का भुगतान कर चुकी हैं। इसके अलावा उन्होंने बिजली बिल और अन्य भुगतान के लिए करीब 60 हजार रुपए का ट्रांजेक्शन किया है। उनकी ही तरह पाटन जनपद के ग्राम खम्हरिया की श्रीमती गायत्री यदु ने एक महीने में लोगों को करीब 30 लाख रुपए का भुगतान किया है। गायत्री बताती हैं बैंक सखी बनने से गाँव और परिवार में सम्मान बढ़ गया है। इस काम में लोगों की दुआएं भी मिलती हैं, इससे वह काफी खुश हैं।
जिला पंचायत सीईओ सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि गांवों में बैंक सखियों के माध्यम से बैंकों की सुविधा पहुंचाने की पहल बहुत उपयोगी साबित हुई है। इसके माध्यम से ग्रामीण हर दिन लगभग पांच लाख रुपए का आहरण कर रहे हैं। हर लेनदेन लिए सखियों को बैंक के द्वारा कमीशन दिया जाता है। ग्रामीणों के लिए यह वरदान की तरह है। इसके न न सिर्फ गांवों में आर्थिक मजबूती आई है बल्कि बैंक सखी बनकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं।