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जिस विश्वविद्यालय से ली दीक्षा, आज वहीं की कुलपति बनी ममता चंद्राकर, ऐसे हुई थी शुरूआत

रायपुर- लोक गायकी से भारत के साथ ही विदेश में अपनी पहचान बना चुकी ममता चंद्राकर को राज्यपाल अनुसुईया उइके ने एशिया के प्रथम संगीत विवि, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ का कुलपति नियुक्त किया है।

इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे ममता चंद्राकर की कड़ी मेहनत और काम के प्रति उनका लगन ही है। 3 दिसंबर 1958 को दुर्ग, छत्तीसगढ़ में लोक गायक दाऊ महासिंह चंद्राकर के घर जन्म लेने वाली ममता का असली नाम मोक्षदा चंद्राकर है। उन्हें अपने पिता से ही गायकी की प्रेरणा मिली। ममता ने मात्र 10 वर्ष की उम्र से ही गायकी शुरू कर दी थी। 1977 में 19 साल की उम्र में रायपुर स्थित आकाशवाणी केंद्र में लोक गायकी में अपने करियर की शुरुआत की।

जिस विश्वविद्यालय से प्राप्त की शिक्षा वहां अब कुलपति नियुक्ति

खास बात यह है कि आज जिस इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय का उन्हें कुलपति नियुक्त किया गया है। वहां से उन्होंने संगीत में अपनी पढ़ाई पूरी की है। 1986 में ममता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर प्रेम चंद्राकर से शादी करली। दोनों की एक बेटी भी है।

देश विदेश के छात्र यहां अध्ययनरत

1956 में खैरागढ़ के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह ने अपनी दिवंगत बेटी इंदिरा के नाम पर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, क्योंकि उनकी बेटी संगीत की बहुत शौकीन थीं। इस विश्वविद्यालय को एशिया का प्रथम संगीत विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है। यहाँ भारत के अलावा अन्य देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैण्‍ड, अफगानिस्‍तान आदि से भी छात्र बड़ी संख्‍या में संगीत की शिक्षा ग्रहण करने प्रतिवर्ष आते हैं।

पद्मश्री और छत्तीसगढ़ रत्न से सम्मानित ममता चंद्राकर

ममता चंद्राकर को 2012 में दाऊ दुलार सिंह मंदराजी अवॉर्ड, 2013 में छत्तीसगढ़ रत्न, 2016 में भारत सरकार की ओर से पद्मश्री अवॉर्ड और 2018 में छत्तीसगढ़ विभूति अलंकरण अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

 

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