फोर्स गोली-गाली खाकर भी जीत रही आदिवासियों का भरोसा ताकि नक्सल आतंक से आजाद हो बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर में बच्चों को शिक्षा तो ग्रामीणों को दवाइयां भी दे रही फोर्स
बस्तर- आज जब देश आजादी की 74वीं वर्षगांठ मना रहा है, तब छत्तीसगढ़ के बस्तर के जवान अपने खून से नक्सलवाद से आजाद कराने में लगे हैं। बस्तर में 1 लाख से ज्यादा जवान तैनात हैं। ये जवान एक तरफ गोलियों के जरिए नक्सलियों को जवाब दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ स्थानीय बोलियों के जरिए दिल जीतकर उन्हें नक्सलवाद की चपेट से दूर ला रहे हैं। जवान कोरोना की गिरफ्त में आने के बाद ठीक होकर फिर मैदान में जमे हुए हैं। आखिर बस्तर को अशिक्षा से, बीमारी से और नक्सलियों से आजाद कराने के लिए हमारे फोर्स के जवान क्या-क्या कर रहे हैं, भास्कर की टीम आपको यह बताने जा रही है।
नक्सलियों के मुखबिर थे बच्चे, अब पुलिस पढ़ा रही, सब कुछ मुहैया करा रही फोर्स
ये बच्चे अब बनना चाहते हैं टीआई, पहले पटाखे फोड़कर नक्सलियों को पुलिस के आने की सूचना देते थे
जगदलपुर के दरभा थाने में दो बच्चे हैं। तीन साल पहले ये नक्सलियों के साथ काम करते थे। इनका काम था नक्सलियों की मुखबिरी करना। ये जंगल में पटाखे फोड़ते थे, तो नक्सली समझ जाते थे कि पुलिस या फोर्स आ रही है। तीन साल से दरभा थाने में ही इनकी परवरिश चल रही है। हम इन बच्चों का नाम इसलिए नहीं लिख रहे कि एक तो यह नाबालिग हैं, दूसरे इन्हें खतरा हो सकता है। पुलिस इन्हें पढ़ा रही है। एक कक्षा पांचवीं में है, तो दूसरा कक्षा छठवीं में। भास्कर ने जब इनसे बात की तो बच्चों ने बताया कि पहले पूरा दिन जंगलों में बीत जाता था, लेकिन अब कई लोगों से मिलते हैं, स्कूल जाते हैं, पढ़ते हैं, तो अच्छा लगता है।
वो कहते हैं कि अब रोज सुबह उठकर पांच किलोमीटर की दौड़ लगाते हैं। कहते हैं कि पूरी ज़िंदगी बदल गई है। दरभा थाने में टाई का रुतबा देखकर वो भी चाहते हैं कि वो टीआई बने। दरभा टीआई लालजी सिन्हा कहते हैं कि दोनों बच्चों में गजब का जोश है। पिछले तीन सालों से वे लगातार पढ़ाई पर तो ध्यान दे ही रहे हैं, अपनी सेहत का भी ख्याल रख रहे हैं।बस्तर के चिंतागुफा में सीआरपीएफ तैनात है। पुलिस के जवान भी हैं। यहां आमचो बस्तर आमचो पुलिस के नाम से एक अभियान चलाया गया। इस अभियान का मकसद यहां के बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है। इसके तहत बच्चों को अच्छी शिक्षा देना और उनके सेहत का ख्याल रखना भी जवानों की ड्यूटी में शामिल है। सीआरपीएफ और पुलिस दोनों की यह काम अपने अपने स्तर पर कर रहे हैं। इसके तहत बच्चों को खेलों का सामान, किताबें, कॉपियां, स्कूल बैग ये सारी चीजें दी जाती हैं। उन्हें प्रेरणा देने के लिए बड़े अफसर खुद उन बच्चों के पास जाते हैं। बातें करते हैं, कहानियां सुनाते हैं। यहां के बच्चों को जीने की राह दिखाने के लिए उन्हें बताया जा रहा है कि वो बड़े होकर क्या बन सकते हैं और कैसे बन सकते हैं। यह पूरी लड़ाई उनका भरोसा जीतने की है।
मलेरिया से तो जूझ रहे थे, अब कोरोना से बच भी रहे और गांव वालों को बचा भी रहे
करीब 150 जवान अब तक कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, फिर भी फोर्स गांव-गांव जाकर बचा रही लोगों को
नक्सलियों से लड़ने के लिए फोर्स को मलेरिया से तो पहले ही जूझना पड़ रहा था, कोरोना ने इस चुनौती में और इजाफा कर दिया। अब फोर्स के जवान कोरोना की चपेट में भी आ रहे हैं, लेकिन जवान क्वारेंटाइन होकर और ठीक होकर फिर मोर्चे पर लौट रहे हैं। अभी तक तकरीबन 150 जवान कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं। पॉजिटिव होने के बाद उन्हें कैंप में अलग से रखा जा रहा है। इधर, पुलिस के जवान भी मोर्चे पर तैनात हैं। आईजी सुंदरराज की मानें तो जो जवान छुट्टी से लौट रहे हैं, पहले 14 दिन अलग रखा जा रहा है, उसके बाद ही मैदान पर उतारा जा रहा है। ये जवान खुद को तो सुरक्षित कर ही रहे हैं।
अपने आसपास के गांवों को भी जा-जाकर सैनेटाइज़ कर रहे हैं। एक कांधे पर उनकी बंदूक लटकी रहती है, तो दूसरे कांधे पर सैनेटाइजर मशीन। कोरोना से आजादी के लिए सीआरपीएफ के जवान जनजागरूकता अभियान चला रहे हैं। कोरोना से बचने के लिए सामान मुफ्त में दे रहे हैं। सीआरपीएफ 80 के जवानों ने इसी को लेकर हाल ही में बड़ा अभियान चलाया। कंपनी कमांडेंट अमिताभ कुमार ने बताया कि जब पता चला कि दरभा में 30 से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, तो फोर्स ने इस अभियान की शुरुआत की। इसी तरह सीआरपीएफ की 150वीं और 170वीं बटालियन भी किताब, बस्ते बांटने के साथ साथ सैनेटाइज करने का काम कर रही है।
जवान नक्सल ऑपरेशन पर निकलते हैं, और हर गांव में मास्क बांटते चलते हैं : सीआरपीएफ के जवान जब नक्सल आपरेशन पर निकल रहे हैं, तो गांव वालों को मास्क भी बांटते चल रहे हैं। इसके अलावा सेनेटाइजर और साबुन भी दे रहे हैं। नक्सलगढ़ गांव समेली, अरनपुर में जब जवान पहुंचे तो यहां बच्चे मास्क के बिना मिले। जवानों ने खुद मास्क पहनाया और फायदा बताया। ऐसे ही कोंडासांवली, कमलपोस्ट, पुसपाल जैसे नक्सलगढ़ गांवों में जवानों ने ग्रामीणों व बच्चों को मास्क बांटा।
मुसीबत में फंसे नक्सलियों के परिवारों की भी मदद के लिए हमेशा तैयार दिखे
कई बार मदद के दौरान रास्ते में आईईडी को डिफ्यूज कर आगे बढ़ना पड़ता है, नदी पार करनी पड़ती है
सीआरपीएफ की सभी बटालियन की कंपनियों के कैम्प में एक अस्पताल है। यहां बीमार ग्रामीणों का इलाज सीआरपीएफ के डॉक्टर खुद करते हैं। अंदरूनी गांवों के इलाकों के मरीजों को इससे सबसे ज़्यादा फायदा मिल रहा है। दंतेवाड़ा- सुकमा ज़िले के बॉर्डर पर बसा धुर नक्सल गांव कोंडासांवली के जंगल में सर्चिंग पर निकले सीआरपीएफ 231 बटालियन के जवानों को बीमार मरीज मिल गया। स्थिति खराब थी। खाट में उस मरीज को बिठाया और अस्पताल ले गए। इधर, नदी पार के गांव वालों के लिए भी जवानों ने हमेशा मदद की। सीआरपीएफ 195 बटालियन के जवानों को एक बीमार का पता चला। धुर नक्सलगढ़ नदी के पार गांव गुफा में एक बीमार रामजी राव सुकरा है, तो वे फौरन उसके पास पहुंचे, जबकि उस वक्त नक्सलियों ने रास्ते में आईईडी लगा रखी थी। जवान इसे डिफ्यूज कर वहां पहुंचे।