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गोंडी भाषा एवं संस्कृति पुरातन एवं समृद्ध : सुश्री उइके

राज्यपाल ‘गोंडी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति’ पर आयोजित ऑनलाइन वेब संगोष्ठी में हुई शामिल 

रायपुर- राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके आज अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के तत्वाधान में ‘‘गोंडी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति’’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन वेब संगोष्ठी में शामिल हुई। उन्होंने मुख्य आतिथ्य की आसंदी से संबोधित करते हुए कहा कि यह आयोजन प्रासंगिक है क्योंकि नवीन शिक्षा नीति के अंतर्गत बच्चों को प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। मुझे आशा है कि यह संगोष्ठी आधुनिक शिक्षा नीति को प्रभावी बनाने में सहायक होगी। राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ के संदर्भ में सुझाव दिया कि गोंडी भाषा में पढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए। इसके लिए विशेष प्रावधान किये जाने पर विचार करना चाहिए। देश के विभिन्न राज्यों में भी इस प्रकार का प्रावधान होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि संबंधित क्षेत्रों में नौकरियों में गोंडी भाषा के जानकारों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इससे भाषा और संस्कृति के संरक्षण में सुविधा होगी। राज्यपाल ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा मिलने से बच्चे उसे आसानी से ग्राह्य कर पाएंगे और उनके ज्ञान में भी वृद्धि होगी। इस संदर्भ में राज्यपालों के सम्मेलन में भी उनके द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष यह बात रखी गई थी।

राज्यपाल ने केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते की सराहना करते हुए कहा कि उनके द्वारा समय-समय पर विभिन्न मंचों के माध्यम से गोंडी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए पहल और चर्चा की गई। राज्यपाल ने कहा कि भारत की प्राचीन भाषाओं में से एक गोंडी द्रविड़ मूल की भाषा है। सर्वप्रथम गोंडी भाषा को समृद्ध करने के लिए मानक शब्दकोष का निर्माण किया जाना चाहिए। आधुनिक विज्ञान, धर्म संस्कृति एवं समसामयिकी की घटनाओं से संबंधित साहित्य का गोंडी भाषा में अनुवाद किया जाना चाहिए। इससे जनजातीय समाज के बच्चों को आधुनिक दुनिया में होने वाले नये अविष्कारों और तकनीकों की जानकारी मिल सकेगी। गोंडी भाषा से जुड़े परम्परागत साहित्य का भी संरक्षण किया जाए, ताकि उन्हें अपनी मातृभाषा में साहित्य एवं आवश्यक जानकारी उपलब्ध करायी जा सके, इससे उनका भाषा के प्रति जुड़ाव होगा और ज्ञान में वृद्धि भी होगी। सुश्री उइके ने बताया कि उनके द्वारा राज्यपालों के सम्मेलन में गोंडी भाषा के संरक्षण के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया था।
राज्यपाल ने सुझाव दिया कि प्राथमिक स्तर पर यह प्रयास करना आवश्यक है कि, जनजाति महानायकों की जीवन गाथा, पंचतंत्र की कहानियां, रामायण एवं महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का भी अनुवाद गोंडी भाषा में किया जाए। साथ ही जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों की जानकारी गोंडी भाषा में लिखित एवं मौखिक स्रोतों अर्थात पुस्तकों, पाम्पलेट, पर्चा, ब्रोसर एवं स्थानीय आकाशवाणी केन्द्रों के माध्यम से स्थानीय बोलियों में प्रसारित किया जाना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि आज आधुनिक समाज के प्रभाव में गोंडी भाषा का अस्तित्व कहीं कहीं पर क्षीण हुआ है इन्हें बचाए रखने की आवश्यकता है। मेरा गोंड जनजाति परिवारों से आग्रह है कि वे बच्चों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ गोंडी भाषा का ज्ञान दें। मेरा सुझाव है कि वहां से जुड़े महापुरूषों तथा लोककथाओं को स्थानीय स्तर पर पाठ्यक्रम में शामिल करें और आधुनिक तकनीक का उपयोग कर लोक कथाओं पर आधारित एनीमेशन और कार्टून फिल्म बनाएं, इससे बच्चे आनंद लेंगे, साथ ही साथ उनका ज्ञानर्जन भी होगा। इस वेबिनार में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते, प्रकाश सिंग उइके सहित अन्य गणमान्य नागरिक शामिल हुए।

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