जिनके ससुराल पास उन्हें लेने पहुंचे भाई-पिता, दूर रहने वाली बेटियां अपने घरों में रखेंगी व्रत
रायपुर- राजधानी समेत प्रदेशभर में हरितालिका तीज शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसके लिए पिता अपनी बेटी और भाई अपनी बहनों को लेने ससुराल पहुंच रहे है। बेटियों को मायके लेकर आने का सिलसिला शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार सिर्फ पास में ससुराल में रहने वाले बेटियों को ही लेवाल लेने जा रहे है। वहीं दूर रहने वाली बेटियों को फोन पर घर आने का न्यौता दिया गया है। लेकिन तीज पर मायके पहुंचना इस बार आसान नहीं है क्योंकि आवागमन के साधन सभी के लिए उपलब्ध नहीं है। मां महामाया देवी मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला बताते है कि यह व्रत धर्म पारायण पतिव्रता सुहागिन औैर कुंवारी कन्याओं का सौभाग्य दायिनी विशेष व्रत है। सुहागिन स्त्रियों अपने पति के लंबी आयु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य व सौभाग्य की कामना के लिए और कुंवारी कन्याएं मनपसंद वर की प्राप्ति की कामना के लिए यह व्रत रखती है। यह पर्व ऐसा है कि इसमें महिलाएं अपने घर जाकर पति के लिए व्रत रखती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के में पाने के लिए किया था। जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शंकर की अर्धांगिनी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब से महिलाएं यह व्रत रख रही है। भविष्य पुराण की कथा के अनुसार राजा हिमाचल व रानी मैनी की पुत्री पार्वती जन्मांतर भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कृत संकल्पित थीं। अपने पिता द्वारा भगवान विष्णु से अपने विवाह की बात सुनकर पार्वती ने दुखी मन से यह बात अपनी सखी को बताई। उनकी सखी उन्हें जंगल ले गई, जहां माता पार्वती ने घोर तपस्या शुरू की। उन्होंने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए अन्न-जल का त्याग कर दिया। उन्होंने वर्षाें तक पेड़ों के पत्ते खाकर, तपती धूप में पंचाग्नि साधना कर, ठंड में पानी के अंदर खड़े होकर, सावन में निराहार रहकर और भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बालू की शिव मूर्ति बनाई। जिसे पत्तों और फूलों से सजाकर श्रद्धापूर्वक पूजन और रात्रि जागरण करती रहीं। इससे भगवान शिव प्रसन्न हो गए और माता पार्वती को पति रूप में प्राप्त हुए। माता पार्वती का व्रत-पूजन व जागरण सहित दुष्कर तपस्या भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सफल हुई थी, इसलिए इसे तीजा कहते है।
बुजुर्ग महिलाएं भी आती है तीजा मनाने
छत्तीसगढ़ में तीजा (हरतालिका तीज) की विशिष्ट परंपरा है, महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं। तीजा मनाने के लिए बेटियों को पिता या भाई ससुराल से लेकर आते है। छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की इतना अधिक महत्व है कि बुजुर्ग महिलाएं भी इस खास मौके पर मायके आने के लिए उत्सुक रहती हैं। महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए तीजा पर्व के एक दिन पहले करू भात ग्रहण कर निर्जला व्रत रखती हैं। बालू से शिव लिंग बनाया जाता है, फूलों का फुलेरा बनाकर साज-सज्जा की जाती है और महिलाएं भजन-कीर्तन कर पूरी रात जागकर शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।