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फर्टिलाइजर बनाने वाले सुरज्योति काे 25 लाख की फंडिंग, देव की दवा से ठीक हाे जाता है माेतियाबिंद, मिलेंगे 24 लाख

रायपुर – इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के इनक्यूबेशन सेंटर रफ्तार एग्री बिजनेस इन्क्यूबेटर (आर-एबीआई) ने इनाेवेटिव बिजनेस आइडिया पर काम कर रहे आंत्रप्रेन्याेर्स से सेंटर से जुड़ने के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। प्राप्त आवेदनाें में से 24 स्टार्टअप को मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर की ओर से फंडिंग के लिए चुना गया है। इसमें अभिनव याेजना के तहत 12 और उद्भव योजना के तहत 12 स्टार्टअप चुने गए हैं। इनक्यूबेशन सेंटर के सीईओ डॉ. हुलास पाठक ने बताया कि देशभर में संचालित 29 इनक्यूबेशन सेंटर्स के 346 स्टार्टअप को फंडिंग के लिए चुना गया है, जिसमें से सबसे ज्यादा 24 स्टार्टअप इंदिरा गांधी कृषि विवि के इनक्यूबेशन सेंटर के हैं। उद्भव योजना के तहत स्टार्टअप को 25 लाख तक और अभिनव याेजना के तहत 5 लाख तक की फंडिंग देने का प्रावधान है। डॉ सुरज्योति के स्टार्टअप को 25 लाख और देव के स्टार्टअप को 24 लाख की फंडिंग मिली है। पढ़िए दाेनाें स्टार्टअप की कहानी।

2 साल रिसर्च कर बनाया फर्टिलाइजर, करवा चुके हैं 2 पेटेंट 
53 साल के डॉ. सुरज्योति बागची के फर्टिलाइजर बेस्ड स्टार्टअप आदित्य बायो इनोवेशन को 25 लाख का फंडिंग मिली है। वे अपने दो इनोवेशन नैनाे फर्टिलाइजर कोहिनूर और प्लांट प्रोटेक्टर सूजलम का पेटेंट भी करवा चुके हैं। उन्होंने बताया, दाे साल की रिसर्च के बाद 2017 में नैनो फर्टिलाइजर कोहिनूर तैयार किया। इसका पेटेंट 2019 में मिला। ये फर्टिलाइजर आयुर्वेदिक और हाेम्याेपैथी दवा से बना है। ये मिट्‌टी के सूक्ष्म जीवाणुओं काे नष्ट नहीं करता। एक एकड़ खेत के लिए 20 एमएल फर्टिलाइजर पर्याप्त है। केमिकल फर्टिलाइजर की तुलना में आधे खर्च में इससे फसलाेंं काे कीड़ाें से सुरक्षित रख सकते हैं। डाॅ. सुरज्याेति एक अन्य प्रोडक्ट प्लांट प्रोटेक्टर सूजलम पर भी काम कर रहे हैं। ये पेस्टीसाइड की तरह काम करता है। 2016 में टमाटर में हाेने वाली इल्ली की समस्या काे ध्यान में रखकर सूजलम बना रहा था। तभी नागपुर के पास कपास में कॉटन बोलबम की समस्या बढ़ गई, जिसके कारण किसान काफी परेशान थे। तब मैंने सूजलम में कुछ बदलाव किए और कपास किसानाें काे इसे इस्तेमाल करने दिया। ये फाॅर्मूला काम कर गया। ये भी आयुर्वेदिक और होम्योपैथी दवा से बना है। आईआईटी हैदराबाद से नैनाे टेक्नाेलाॅजी की पढ़ाई करने वाले मेरे भांजे पार्थ प्रतिम चटर्जी की मदद से इसे तैयार किया है। जनवरी 2020 में इसका पेटेंट भी मिल गया है। एक एकड़ खेत के लिए 200 एमएल सूजलम पर्याप्त है। इसे 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना हाेता है।

आई डिसीज के लिए जड़ी-बूटियाें से बनाई दवा पांच साल में 10 हजार मरीज कर चुके हैं इस्तेमाल

42 साल के देव गर्ग के स्टार्टअप नेत्रम आयुर्वेदा काे 24 लाख की फंडिंग मिली है। वे पिछले पांच सालाें से बताैर स्टार्टअप ऐसी आयुर्वेदिक दवा बना रहे हैं, जिससे माेतियाबिंदा सहित आंखाें से जुड़ी कई बीमारियाें का इलाज संभव है। देव गर्ग ने बताया, मेरे ससुर राजकिशोर अग्रवाल वैद्य थे। उन्होंने 35 साल पहले छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियाें से दवा तैयार की थी। इसी दवा से उन्हाेंने आंखाें की कई बीमारियां दूर कीं। उनकी विरासत आगे बढ़ाने हमने 2015 से स्टार्टअप शुरू किया। पांच सालाें में 10 हजार से ज्यादा मरीजाें काे आयुर्वेदिक दवा दे चुके हैं, जिसमें से 80 फीसदी मरीजाें की राेशनी बढ़ी है। हमें इसका हर्बल लाइसेंस प्राप्त है। साल में एक बार तीन महीने की मेहनत से दवा बनाते हैं। काजल की तरह ये दवा आंखाें के निचले हिस्से में लगाई जाती है। देव ने दावा किया कि माेतियाबिंद के सैकड़ाें मरीजाें काे दवा से राहत मिली है। आंख से आंसू आना, आंखाें की कमजाेरी के कारण सिरदर्द हाेने जैसी समस्याएं इससे दूर हाेती हैं। आंखाें की राेशनी भी बढ़ती है। उन्हाेंने बताया, वाइफ मंजू गर्ग दवा बनाने और मैं मैनेजमेंट संभालता हूं। हमारा सालाना टर्नओवर 60 लाख है। पेटेंट-ट्रेडमार्क के लिए भी आवेदन कर चुके हैं।

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