मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित, भूखे मरने की नौबत, कोई सब्जी बेच कर रहीं गुजारा तो कोई झाड़ू-पोछा करने को मजबूर
रायपुर – 36 साल की संगीता की शादी 15 साल पहले एक शिक्षाकर्मी से हुई थी। कुछ ही साल में पति गुजर गए। उसके दो बच्चे हैं। उसने सोचा था कि इस बार बेटी-बेटे को किसी प्राइवेट स्कूल में तो दाखिला करवा ही देगी पर पर वह जिस सरकारी प्रशिक्षण केंद्र में डेली वेजेस में काम करती थी। वहां ताला लटक गया। उसका रोजगार छिन गया। थोड़ी जमा पूंजी, किराए के घर पर चली गई। वह झाड़ू, पोछा, बर्तन करने काे तैयार है। सुरेश ठाकुर और उनकी पत्नी नीलम एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे। दोनों से इस्तीफा लिखवा लिया गया। कोरोना के कारण स्कूल बंद हुए तो कई महिला शिक्षिकाओं की नौकरी चली गई। 5 से 10 हजार रुपए मासिक आय बंद हो गई। 5 माह से उनके पास कोई काम नहीं है। कुछ तो ऐसे भी है जिनके पति की भी नौकरी चली गई। 32 साल की राशि एक प्राइवेट शैक्षणिक संस्थान में भृत्य थी। उसे लीव विदाउट पे (एलडब्ल्यूपी)पर भेज दिया गया। राशि बताती है कि एलडब्लूपी पर जाने वाली वह अकेली नहीं बल्कि दर्जनभर महिलाएं हैं। जिनकी नौकरी बच गई है, उन्हें संस्थान आधा वेतन दे रहा है। शालिनी शॉपिंग मॉल में सफाईकर्मी थी, अब वह बेरोजगार है। बारात में सिर पर लाइट रखकर रौशनी बिखरने वाली तारा के लिए शादियों का सीजन अंधेरे की तरह बीता। छत्तीसगढ़ के एक ही शहर में न जाने कितनी ऐसी महिलाएं हैं, जिनकी नौकरी चली गई, रोजगार छिन गया, अब समझा जा सकता है कि पूरे राज्य में क्या हालात होंगे। कई महिलाओं ने बातचीत में बताया कि छंटनी की शुरुआत संस्थानों में महिलाओं से की गई। वे नौकरी से निकालने की आसान शिकार रहीं। बता दें कि जिले में 1 लाख 32 हजार तो प्रदेश में 22 लाख 11 हजार रजिस्टर्ड शिक्षित बेरोजगार पहले से हैं। इसमें 35 फीसदी महिलाएं हैं।
30 हजार महिलाओं का रोजगार छिना
1 लाख 12 हजार मजदूरों की कोरोना के कारण बिलासपुर जिले में वापसी हुई। इनमें करीब 30 हजार महिला मजदूर हैं। वे वापस आईं और सीधे बेरोजगार हो गईं। उन्हें फिर काम नहीं मिला। 10 दिन की बच्ची के साथ पुणे के ईंट भट्ठे से लौटी कोसा गांव की फिरतिन बेकार हो गई है।
कुटीर उद्योग ठप, महिलाओं के लिए भूखों मरने की नौबत : 10 महिलाओं के साथ मसाला उद्योग चलाने वाली विमला वर्मा कहती हैं कि कोरोना ने उन्हें कहीं का न छोड़ा। काम धंधा बहुत धीमा हो गया है। गरीब महिलाएं उनसे जुड़ी हैं। सभी त्रस्त हैं। बेटी स्कूल में पढ़ाती थी, उसकी नौकरी भी छूट गई है। उधार लेकर जीवन बसर कर रहे हैं। रेग्जीन बैग व पर्स बनाकर उसे मार्केट में बेचने वाली राधा परिहार बताती हैं कि महिला आईटीआई में उन्होंने अब तक 1500 महिलाओं व युवतियों को ये काम सिखाया लेकिन अब उनके ही सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है।
बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी पर गिनती के मजदूरों को मिला काम : सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट में कहा गया कि छत्तीसगढ़ की बेरोजगारी दर सितंबर 2018 में 22.2 फीसदी थी, जो घटकर अप्रैल 2020 में 3.4 फीसदी हुई है। प्रदेश में 18 लाख से अधिक लोगों को मनरेगा के अंतर्गत कार्य दिया गया था। सर्वाधिक पलायन बिलासपुर से हुए। 1 लाख 12 हजार मजदूर लौटे परंतु बारिश के कारण काम नहीं मिला।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
“मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाएं जो अचार, पापड़ आदि बनाकर आर्थिक रूप से सक्षम बन रही थीं। उन्हें कोरोना ने बेरोजगार कर दिया। उनका पुराना स्टॉक ही रखा है। टिफिन बंद होने से कई महिलाओं का रोजगार छीन गया। निम्नवर्गीय महिलाओं को खाने के लाले हैं। हमने 25 सिलाई मशीन दी। मास्क बनाकर वे गुजारा कर रही हैं। पर सब ऐसा नहीं कर पा रहीं।”
– विद्या केडिया, अध्यक्ष, संयुक्त महिला संगठन
“ऐसी महिलाओं की तादाद हजारों में है, जिन्हें कोरोना ने बेरोजगार बना दिया। वे काम के लिए फोन करतीं हैं। होटल में खाना पकाने वाली बिमला चौहान बेरोजगार हुई तो उसे सिलाई मशीन दी। कई को मोबाइल व साइकिल दिया। पर सब तक पहुंच पाना और उन्हें मदद कर पाना असंभव है।”
– रेखा आहूजा,डॉ. अनिता अग्रवाल,एक नई पहल