नाराज आदिवासियों ने रथ चुराया, बस्तर का राजपरिवार मनाकर लाया
जगदलपुर -बस्तर दशहरा में सोमवार को भीतर रैनी विधान में सिरहासार के सामने मावली मंदिर और गाेलबाजार हाेते हुए किलेपाल परगना के 5 साै ज्यादा माड़िया आदिवासियों ने रथ को खींचकर दंतेश्वरी मंदिर तक पहुंचाया। यहीं से परंपरा के अनुसार मध्यरात्रि रथ काे चुराकर कुम्हड़ाकाेट के जंगल तक पहुंचा दिया। मंगलवार दाेपहर 3 बजे राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव घोड़े पर सवार होकर दंतेवाड़ा से आई मावली माता और अन्य मांझी चालकियों के साथ कुम्हड़ाकोट निकले। वहां नवाखानी तिहार मनाया। यहां बाहर रैनी विधान को पूरा किया गया। फिर रथ को वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया गया।
कुम्हड़ाकोट जंगल में पहुंचा राज परिवार
मंगलवार को कुम्हड़ाकोट जंगल में पहले नवाखानी और बाद में बाहर रैनी रस्म पूरी हुई। घाटलोहंगा और तोकापाल में ब्राह्मण परिवार के सदस्य प्रसाद बनाने सुबह जंगल पहुंच गए थे। यहां नया चावल, दूध और विभिन्न प्रकार के मेवे से मां दंतेश्वरी के लिए प्रसाद बनाया। नई फसल से बनी खीर का भोग चढ़ाया गया। करीब 5 बजे माईजी के छत्र को पुनः स्थापित किया गया। राज परिवार के सदस्यों और गांवों से आए देवी- देवताओं ने रथ की 7 परिक्रमा की। बाहर रैनी रथ संचालन शुरू हुआ। कुम्हड़ाकोट जंगल से राजमहल के सामने तक करीब 3 किलोमीटर में भीड़ रही। रथ के आगे खुले वाहन में मावली माता का छत्र था। बुधवार को सुबह 11 बजे देवी मंदिर में काछन जात्रा विधान पूरा किया जाएगा।