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छत्तीसगढ़ में नए कानून से निजी मंडियों पर बढ़ेगा सरकारी नियंत्रण; केंद्र से जिन मुद्दों पर मतभेद थे, उन्हें छुआ ही नहीं

रायपुर -छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार ने कृषि उपज मंडी कानून में बदलाव कर दिया है। विधानसभा से पारित यह विधेयक राज्यपाल को भेजा जा रहा है। अगर राज्यपाल अनुसूईया उइके ने विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए तो वह कानून बन जाएगा।

नए कानून में सरकार ने निजी मंडियों, गोदामों और खाद्य प्रसंस्करण कारखानों को डीम्ड मंडी घोषित करने का प्रावधान कर दिया है। इस नई व्यवस्था से निजी मंडियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा। सरकार की कोशिश है कि जहां कहीं भी कृषि उपजों की खरीद बिक्री हो, वहां मंडी कानून लागू हो ताकि किसानों को धोखाधड़ी से बचाया जा सके।

विधेयक पेश करते हुए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे ने दावा किया है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से कृषि व्यवस्था में पूंजीपतियों का नियंत्रण बढ़ जाएगा। इसकी वजह से महंगाई बढ़ने, समर्थन मूल्य में धान खरीदी और सार्वभौमिक वितरण प्रणाली के प्रभावित होने की आशंका है। छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी कानून में प्रस्तावित संशोधन से गरीबों, मजदूरों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सकेगी।

हालांकि, विशेषज्ञों की राय कुछ और आ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकार केंद्र के जिन प्रावधानों को छत्तीसगढ़ में निष्प्रभावी करने के दावे के साथ यह विधेयक लाई है, उन्हें तो छुआ तक नहीं गया है। छत्तीसगढ़ किसान-मजदूर महासंघ के तेजराम विद्रोही, रूपन चंद्राकर, जुगनू चंद्राकर ने भी दावा किया है कि यह विधेयक किसानों को बहलाने के लिए लाया गया है। बेहतर होता कि पंजाब की तर्ज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदी को लेकर एक कड़ा कानून लाया जाता, जिसमें एमएसपी से कम की खरीदी पर संबंधित व्यापारिक प्रतिष्ठान, कारपोरेट और मंडी अधिकारियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का प्रावधान होता।

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के अध्यक्ष राजकुमार गुप्त ने कहा, डीम्ड मंडी घोषित करने, उपजों के परिवहन की निगरानी और जब्ती करने, निजी मंडी के भंडारण की जांच करने, जानकारी छुपाने या गलत जानकारी देने पर 3 माह की सजा का प्रावधान करने से किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। मंच ने कहा, न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी न देकर सरकार ने किसानों की भावनाओं को आहत किया है। मंच ने न्यूनतम मूल्य की स्पष्ट गारंटी देने वाले कानूनी प्रावधानों की मांग की है।

हम टच नहीं कर सकते: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार को कहा- संघीय व्यवस्था है। इसके तहत संसद में जो कानून पारित होता है तो समवर्ती सूची वाले विषयों पर केंद्र का कानून ही मान्य होगा, हम उसे टच नहीं कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि उन कानूनों से छत्तीसगढ़ के किसानों का नुकसान न हो।

मंडी संशोधन विधेयक में यह प्रावधान

  • राज्य सरकार कृषि उपज के क्रय-विक्रय, प्रसंस्करण या विनिर्माण, कोल्ड स्टोरेज, साइलोज, भण्डागार, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग तथा लेन-देन प्लेटफार्म और ऐसे अन्य स्थान अथवा संरचनाओं को डीम्ड मंडी घोषित कर सकेगी।
  • मण्डी समिति का सचिव या बोर्ड या मण्डी समिति का कोई भी अधिकारी या सेवक और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अधिकारी या सेवक, किसी ऐसे व्यक्ति से, जो किसी भी किस्म की अधिसूचित कृषि उपज का व्यापार करता हो उसके रजिस्टर और व्यापार से जुड़े दस्तावेज मांग सकता है।
  • ऐसे अधिकारी व्यापारी के कार्यालय, व्यापार के स्थान, भण्डागार, स्थापना, प्रसंस्करण या विनिर्माण इकाई या वाहनों का निरीक्षण कर सकेंगे।
  • ऐसे अधिकारी को अगर संदेह है कि संबंधित व्यापारी ने निर्धारित प्रारूप में लेखे एवं दस्तावेज नहीं रखे हैं अथवा गलत लेखा रख रहा है तो दस्तावेजों को जब्त कर सकेगा।
  • ऐसा अधिकारी किसी भी व्यापार के स्थान, भण्डागार, कार्यालय, स्थापना, गोदाम, प्रसंस्करण या विनिर्माण इकाई या वाहन में, जिसके संबंध में ऐसे अधिकारी या सेवक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि उनमें ऐसा व्यक्ति अपने व्यापार के लेखे, रजिस्टर या दस्तावेज, प्रारूप या अपने व्यापार के संबंध में अधिसूचित कृषि उपज के स्टॉक रखता है या उस समय रखा है में तलाशी ले सकेगा।
  • अधिसूचित कृषि उपज के क्रय-विक्रय से संबंधित लेखा पुस्तकें या अन्य दस्तावेज, प्रारूप गलत पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध सक्षम अधिकारी वाद दायर कर सकेगा।
  • राज्य सरकार, अधिसूचित कृषि उपज के विक्रय में कृषकों को अपने उत्पाद को स्थानीय मंडी के साथ-साथ प्रदेश की अन्य मंडियों तथा अन्य राज्यों के व्यापारियों को गुणवत्ता के आधार पर पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से बेचकर बेहतर कीमत प्राप्त करने तथा समय पर आनलाईन भुगतान हेतु इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफार्म की स्थापना कर सकेगी।
  • लेखा-पुस्तकें या अन्य दस्तावेज, प्रारूप में संधारित मात्रा से अधिक या कम अधिसूचित कृषि उपज रखता हो, तो वह दोष सिद्धि पर 3 महीने का कारावास अथवा पांच हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों से दंडित होगा.दोबारा ऐसा होने पर छह महीने का कारावास और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान होगा।

तीन केंद्रीय कानूनों में ऐसी व्यवस्था

  • कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य – संवर्धन और सरलीकरण कानून – पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री मंडी परिसर में होने की शर्त हटा दिया गया है. कृषि माल की जो खरीद मंडी से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा। खरीदार को तीन दिन के अंदर किसानों का भुगतान करना होगा. विवाद होने पर एसडीएम इसका समाधान करेंगे. पहले बातचीत से समाधान की कोशिश होगी. एसडीएम के आदेश की अपील कलेक्टर के यहां होगी।
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम – 1955 में इस कानून से व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक सीमा से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी. अब आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है।
  • कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून – इस कानून से किसानों और निजी कंपनियों के बीच में कांट्रेक्ट फार्मिंग का रास्ता खोला गया है।

राज्य सरकार का विधेयक केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए 3 नए किसान कानूनों का ना केवल अनुमोदन करता है बल्कि उससे आगे बढ़कर निजी-कार्पोरेट्स मंडियों को शासकीय मान्यता देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है। विधेयक राज्य सरकार को निजी मंडियों से टैक्स वसूलने, जांच करने, रिकार्ड देखने, लेखा-जोखा की जांच करने के बहाने सरकारी छापा मारने का अधिकार देता है, लेकिन किसानों को किसी भी तरह के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज विक्रय की कोई गारंटी नहीं देता। यह कांट्रैक्ट फार्मिंग को औपचारिक स्वरूप देता है। जिन तीन कानूनों की खिलाफत मुख्यमंत्री कर रहे हैं उन तीनों पर यह विधेयक मौन है और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी इसी तरह चुप्पी बरकरार है। इससे छत्तीसगढ़ के किसानों को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है।

– डॉ. संकेत ठाकुर, कृषि वैज्ञानिक और सरकार के पूर्व कृषि सलाहकार

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

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