बेमेतरा। कथावाचक पंडित श्री राम प्रसाद शास्त्री कोविंद ने भागवत कथा कहा। नामदेव परिवार के द्वारा भागवत कथा का आयोजन श्री राम मंदिर में किया गया, जिसमें भागवत कथा के प्रथम दिन कलश यात्रा गोकरण महत्त्व तथा दूसरे दिन भागवत कथा प्रारंभ हुआ।
परीक्षित मोक्ष, सुखदेव संवाद व तीसरे दिन कपिल गीता शिव शक्ति चरित्र ध्रुव चरित्र के गुणगान को किया गया। महाराज ने कहा मानव के जीवन काल में अगर कोई अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है तो भागवत कथा एक ऐसा माध्यम है, जिसके श्रवण मात्र से अकाल मृत्यु को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके साथ भगवत कथा के आयोजन करने वालों को अश्वमेध यज्ञ का फल भी प्राप्त होता है, जो इनके श्रवण करते हैं उनके समस्त पापों का नाश हो जाता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। बेमेतरा के स्थानीय राम मंदिर में नामदेव परिवार के द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया गया।
भागवत कथा रविवार 7 तारीख से प्रारंभ होकर 15 तारीख गीता प्रवचन तुलसी वर्षा, यज्ञ पूर्णाहुति, शांति प्रीतिभोज, महा प्रसादी के माध्यम से संपन्न होना है। नामदेव परिवार के राजेश नामदेव ने बताया कि यह आयोजन उनके पुत्र स्वर्गवासी प्रांशु के आत्मा शांति के लिए रखा गया है।
इस आयोजन को लेकर पहले से तैयारी की गई। वही दूरदराज से लोग बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। महाराज श्री रामप्रताप शास्त्री जी ने रूखमणी विवाह में बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने रुकमणी का हरण नहीं किया था। उनका वर्णन किया था क्योंकि हरण उनका किया जाता है, जो कोई दूसरा हो लेकिन साक्षात जगत जननी मां लक्ष्मी रुकमणी के रूप में विराजी थी और भगवान श्री कृष्ण के रूप में भगवान विष्णु अवतरित थे तो यह हरण नहीं कहा जा सकता, यह वरण है।
रूखमणी विवाह में जहां श्रोताओं ने जमकर भगवान के विवाह का आनंद उठाया। वहीं, भक्तगण भजन में थिरकते नजर आए जमकर तुलसी वर्षा हुई और प्रसाद का भी वितरण किया गया। श्री नामदेव ने बताया कि कल श्री राम जानकी मंदिर से कलश यात्रा का आयोजन भी किया जाना है, जो भव्य रुप से नगर भ्रमण करते हुए पुनः उसके निवास स्थान पर पहुंचेगी।
वहीं श्री प्रांशु की याद में वार्षिक श्राद्ध का आयोजन भी किया गया है। इसके साथ ही 15 तारीख को भगवान श्री कृष्ण और सुदामा के मिलन की कथा कही जाएगी। कहा जाता है कि अगर मित्रता हो तो श्री कृष्ण और सुदामा की जैसी होनी चाहिए। यह मित्रता ऐसी है कि भक्त और भगवान एक दूसरे में नजर आते हैं। भगवान कृष्ण ने जब तीन मुट्ठी अन्न सुदामा के पोटली से खाया था। तब यह तीनों लोक को देने के लिए तैयार थे।
ऐसी स्थिति में माता रूखमणी ने भगवान श्री कृष्ण के हाथ को तीसरी मुट्ठी में रोका, अगर नहीं रोक पाती तो भगवान रंक होते और सुदामा राजा हो जाते हैं, जिसके चलते श्री कृष्ण ने कहा कि आज रूखमणी मैं ऐसी स्थिति में हूं कि मेरे भक्तों ने मुझे एक अन्न का दाना दिया था और उस अन्य के दाने के लिए मैं उन्हें समस्त संसार ब्रह्मलोक सहित सब कुछ दे सकता हूं।
आखिरकार भक्त व भगवान दोनों ही समान रूप से नजर आते, लेकिन माता रूखमणी ने तीसरी मुट्ठी को रोका और भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को सुख संपत्ति का आशीर्वाद प्रदान किया। इसके साथ ही भगवान विश्वकर्मा का आह्वान कर भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा के आसपास रहने वाले सभी लोगों के घर को महल सा बना दिया। आज भी भगवान भक्त के वश में ही रहते हैं।