कबीरधाम। मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, बल, कीर्ति, लक्ष्मी, पुण्य, सुख आदि प्राप्त होता है। आदिकाल से नारी पूजित रही है। माता अपने संतति की निर्मात्री, सृष्टा, पोषक, संरक्षक होती है। नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण स्थान है।
पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में पुरूषोत्तम अग्रवाल की जिज्ञासा पर संत रामबालकदासजी ने कहा कि जिस माँ के आंचल में शांति, सुरक्षा, शीतलता की अनुभूति होती है वह कहीं नहीं मिल सकती। हर काल में महापुरूषों ने नारी सम्मान की रक्षा की बात कही है। स्वयं वेद भगवान ने कहा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”। वैदिक परंपरा में दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी एवं दैवीय शक्तियों की नित्य आराधना होती है। इन सबके बावजूद समाज में व्याप्त कलुषित भावनाओं ने नारी शक्ति का अपमान किया है। त्रेतायुग में रावण ने छल से माता सीता का अपहरण किया तो द्वापर में भरी राजसभा में द्रोपदी का अपमान हुआ।
प्रत्येक काल में शक्ल बदल-बदल कर नारी शक्ति का अपमान बदस्तूर जारी है। बाबाजी ने कहा नारी के साथ छल, कपट या धोखा का तात्पर्य शील, मर्यादा, सदाचार का अपहरण है। नारी सम्मान की रक्षा में बने नित नये कानून भी नारी प्रताड़ना रोकने में अक्षम साबित हुए हैं। जब तक नारी का सम्मान सुरक्षित रहेगा समाज में सदाचार, संस्कार, सात्विकता, दिव्यता, ममता, शांतता, सरलता, सहजता आदि दैविक गुण कायम रहेंगे।
बाबाजी ने कहा बंगाल की परंपरा में विवाह के समय वर अपनी वधू का पूजन करता है। परिजन घर में लक्ष्मी का आगमन मानते हुए उसकी आरती कर घर में प्रवेश कराते हैं। दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या की विसंगतियों को मिटाना होगा। नारी पढ़ेगी विकास गढ़ेगी तथा ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ का नारा देने वाले नेताओं तथा सरकारों को आढ़े हाथ लेते हुए बाबाजी ने कहा एक तरफ तो ये ऐसा नारा लगाते हैं व दूसरी ओर नारी शक्ति के सबसे बढ़े दुश्मन शराब को बढ़ावा दे रहे हैं। जब तक शराब दुकानों तथा इसे पीकर कुत्सित राक्षसी वृत्तियों को नहीं रोका जायेगा तब तक नारी की अस्मिता सुरक्षित नहीं होगी।
जिस घर में नारी शालीन, शिक्षित, संस्कारी है। वह घर स्वर्ग सा सुंदर है। नारी का हर दायित्व, कर्तव्य, निष्ठा धर्म से जुड़ा होता है।
आज के ऑनलाइन सत्संग में रिचा बहन झलमला ने मीठा मोती के माध्यम से बहुत सुंदर संदेश दिया। क्रोध लोहार के हथौड़े की तरह है, जो एक ठोकर में लोहे के दो टुकड़े कर देता है लेकिन प्रेम सुनार के हथौड़े की तरह है, जो ठोक ठाक कर आभूषण तैयार कर देता है। संत ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि क्रोध पाप का मूल है अर्थात यथासंभव हमें क्रोध से बचना चाहिए और प्रेम पूर्वक जीवन निर्वाह करना चाहिए।