कबीरधाम। शासकीय आदर्श कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला कवर्धा को स्वामी आत्मानन्द हिंदी उत्कृष्ट विद्यालय बनाए जाने का विरोध शुरू हो गया हैं। इसे लेकर छात्राओं व पालको और भाजपा महिला मोर्चा ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है।
उन्होंने ज्ञापन में कहा कि लगभग 1500 छात्राओं की दर्ज संख्या वाले शहर के हृदय स्थल स्थित शासकीय आदर्श कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला कवर्धा में लगभग 80 से 90 प्रतिशत लड़कियां अनुसूचित जाति व जनजातिय वर्ग की अध्ययनरत हैं। वही इस विद्यालय को अचानक परिवर्तन करने से लड़कियों को परेशानी होगी। ऐसा करने से केवल लड़कियों का एडमिशन होगा, जिस वजह से जिले के लड़कों को योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। इसलिए किसी अन्य स्कूल को आत्मानंद हिंदी उत्कृष्ट विद्यालय बनाने का चयन किया जाना चाहिए।
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शाला बनाये जाने से शाला में संचालित कृषि संकाय व वोकेशनल कोर्स बंद हो जाएंगे, जिससे पढ़ाई कर रही लड़कियों और नए प्रवेश लेने वाली छात्राओं के लिए विषयों की शिक्षा बंद हो जाएगी, जो शहर और जिले वासियों के लिए अपूरणीय क्षति होगी। शाला में खेल का ग्राउंड नही होने और समुचित स्थान नही होने के कारण जगह की अपूर्णता के कारण भी स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शाला खोला जाना उचित नहीं है।
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शाला बनाये जाने से इस आदर्श कन्या शाला का अस्तित्व खत्म हो जाएगा, जिस वजह शाला को समय समय पर विभिन्न अवसरों पर निर्धन व गरीब छात्राओं की शिक्षा और प्रोत्साहन के लिए दान देने वाले दान दाताओं की भावनाओं को भी ठेस पहुंचेगा, आत्मानंद उत्कृष्ट शाला बनाये जाने से इस शाला में आने वाले समय में बच्चो का एडमिशन सीमित संख्या में होगा, जिससे जिला मुख्यालय में आकर पढ़ाई का सपना देख रही लड़कियों का सपना टूट जाएगा। पालक अपनी लड़कियों का एडमिशन आदर्श कन्या में ही कराना चाहते है। वही, ऐसा नहीं होने पर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचेगा।
आदर्श कन्या शाला में सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई होने के कारण दूरदराज के हुए स्वामी आत्मनन्द उत्तकृष्ठ विद्यालय को अन्यत्र संचालित किया जाए स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शाला बनाये जाने के लिए शासन व प्रशासन द्वारा बार-बार स्कूल चयन में निर्णय बदल कर भ्रम पैदा किया जा रहा है। इससे लड़कियों और उनके पालकों में रोष व्याप्त हो रहा है।
वही, आक्रोश जताते हुए भाजपा महिला मोर्चा, कन्या स्कूल की छात्राओं और पालकों ने ज्ञापन में कहा कि उनकी मांगों पर यदि अमल नहीं किया गया तो वह आंदोलन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।