कबीरधामछत्तीसगढ़

कबीरधाम की खबर : मजदूर दिवस पर कलेक्टर सहित जिले के सभी लोगों ने लिया बोरे-बासी का स्वाद, छत्तीसगढ़ की जीवनशैली का अहम हिस्सा है ‘बासी’

कबीरधाम। छत्तीसगढ़ में इस बार अंतराष्ट्रीय श्रमिक दिवस 1 मई को अलग ही अंदाज में मनाया गया। अंतराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर श्रमिकों के सम्मान स्वरूप मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अह्वान पर जिले के जनप्रतिनिधि, सभी अधिकारी, श्रमिक किसान, गणमान्य नागरिक, और जनसमान्य सभी ने छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय आहार बोरे-बासी का आंनद लिया। खासकर छत्तीसगढ़ की कबीरधाम जिले के आदिवासी एवं विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति बाहूल्य बोड़ला और पंडरिया विकासखण्ड के सूदूर वनांचलों में रहने वाले वनवासियों को मुख्यमंत्री के इस पहल ने इस बार अपनापन का अहसास भी करा दिया। जिले के कोटवार से लेकर कलेक्टर और दिहाड़ी मजदूर से लेकर भूमिहार किसानों ने भी अंतराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर छत्तीसगढ़ की प्रसद्धि व्यंजन में शामिल बोरे बासी का आनंद लिया।

कलेक्टर रमेश कुमार शर्मा, पुलिस अधीक्षक डॉ लाल उम्मेद सिंह, वनमंडलाअधिकारी चुरामणि सिंह, जिला पंचायत सीईओ संदिप अग्रवाल और कवर्धा नगर पालिका अध्यक्ष ऋषि कुमार शर्मा ने अपने परिवार जनों के साथ बोरे बासी, प्याज,चेज भासी, आमारी बाजी, जड़ी सब्जी और बड़ी-बिजौड़ी के साथ इस प्रसिद्ध आहार बासी का आनंद लिया।

कलेक्टर शर्मा ने जिले वासियों को मजदूर दिवस की बधाई देते हुए कहा कि आज का दिन श्रमिक भाईयों और मजदूरों के लिए है। जिले में जिस-जिस स्थानां पर मनरेगा के कार्य चल रहे है, वहां सभी स्थानों पर एक ही समय पर आज श्रमिक भाईयों को खाना-खाने के लिए समय निर्धारित किया था। सभी ने अपने-अपने टिफिन से बोरे बासी का एक साथ आंनद भी लिया। बोरे बासी सेहद के लिए लाभदायक है। इससे हमारे शरीर को ठंडकता मिलती है। उर्जा का प्रमुख स्त्रोत भी है। लू और गर्मियों से बचाने में बोरे बासी सभी गुण भी है।

जिले के कवर्धा,बोड़ला, पंडरिया, और सहसपुर लोहारा जनपद पंचायत सीईओ और उनके अमलों ने एक साथ बासी-चटनी खाकर इस दिवस को समर्मित किया। इसके साथ ही पंडरिया एसडीएम डीएल डाहिरें, बोड़ला एसडीएम पीसी कोरे, कवर्धा एसडीएम विनय सोनी जिले के सभी अधिकारीगण एस एस कुर्रे, भूपेन्द्र ठाकुर, सतीश पटले, विनोद कोचे, पन्ना लाल धुर्वे, गुलाब डड़सेना, आरती पांडेय,हरिश सक्सेना सभी अधिकारियों ने श्रमिकों के सम्मान में अपने -अपने परिवारजनों के साथ बोरे बासी का आनंद लिया।

बोरे-बासी खाने से लाभ –

बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लाभ कई हैं। इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है, जिसके कारण गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है। पानी की ज्यादा मात्रा होने के कारण मूत्र उत्सर्जन क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है। बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है। गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह रामबाण खाद्य है। बासी एक प्रकार से डाइयूरेटिक का काम करता है, अर्थ यह है कि बासी में पानी की भरपूर मात्रा होने के कारण पेशाब ज्यादा लगती है, यही कारण है कि नियमित रूप से बासी का सेवन किया जाए तो मूत्र संस्थान में होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। पथरी की समस्या होने से भी बचा जा सकता है। चेहरे में ताजगी, शरीर में स्फूर्ति रहती है। बासी के साथ माड़ और पानी से मांसपेशियों को पोषण भी मिलता है। बासी खाने से मोटापा भी दूर भागता है। बासी का सेवन अनिद्रा की बीमारी से भी बचाता है। ऐसा माना जाता है कि बासी खाने से होंठ नहीं फटते हैं। मुंह में छाले की समस्या नहीं होती है।

बासी का पोषक मूल्य –

बासी में मुख्य रूप से संपूर्ण पोषक तत्वों का समावेश मिलता है। बासी में कार्बोहाइड्रेट, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, विटामिन्स, मुख्य रूप से विटामिन बी-12, खनिज लवण और जल की बहुतायत होती है। ताजे बने चावल (भात) की अपेक्षा इसमें करीब 60 फीसदी कैलोरी ज्यादा होती है। बासी को संतुलित आहार कहा जा सकता है। दूसरी ओर बासी के साथ हमेशा भाजी खाया जाता है। पोषक मूल्यों के लिहाज से भाजी में लौह तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। इसके अलावा बासी के साथ दही या मही सेवन किया जाता है। दही या मही में भारी मात्रा में कैल्शियम मौजूद रहते हैं। इस तरह से सामान्य रूप से बात की जाए तो बासी किसी व्यक्ति के पेट भरने के साथ उसे संतुलित पोषक मूल्य भी प्रदान करता है।

बोरे और बासी बनाने की विधि –

जहां बाकी व्यंजनों को बनाने के कई झंझट हैं, वहीं बोरे और बासी बनाने की विधि बहुत ही सरल है। न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी की। खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है। बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है। यहां बोरे और बासी इसलिए लिखा जा रहा है मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है।

बोरे से अर्थ, जहां तत्काल चुरे हुए भात (चावल) को पानी में डूबाकर खाना है। वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर भात (चावल) को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है। कई लोग भात के पसिया (माड़) को भी भात और पानी के साथ मिलाने में इस्तेमाल करते हैं। यह पौष्टिक भी होता है और स्वादिष्ट भी। बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें लोग स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं।

प्याज, अचार और भाजी बढ़ा देते हैं स्वाद –

 

बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परम्परा सी रही है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है। वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी जैसी सहायक चीजें बोरे और बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं। दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है। इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है। इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दुगुना हो जाता है। इधर बोरे को दही में डूबाकर भी खाया जाता है। गांव-देहातों में मसूर की सब्जी के साथ बासी का सेवन करने की भी परंपरा है। कुछ लोग बोरे-बासी के साथ में बड़ी-बिजौरी भी स्वाद के लिए खाते हैं।

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!