रायपुर। प्रदेश में कॉलेज विद्यार्थियों की शिकायतों के निराकरण के लिए लोकपाल का गठन होगा। यूजीसी ने इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी है। लोकपाल के दायरे में सरकारी, निजी, और डीम्ड विश्वविद्यालय आएंगे। छात्रों से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए विश्वविद्यालयों में लोकपाल की नियुक्ति की जाएगी। लोकपाल की नियुक्ति नहीं होने पर यूजीसी विश्वविद्यालय का अनुदान तक रोक सकती है।
यूजीसी ने लोकपाल के गठन के लिए 11 अपै्रल को अधिसूचना जारी कर दी है। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग ने इसकी प्रक्रिया शुरू नहीं की है, लेकिन लोकपाल के प्रावधानों पर चर्चा चल रही है। लोकपाल के गठन के उद्देश्य पर यह साफ किया गया है कि किसी संस्थान में पहले से नामांकित विद्यार्थियों, और ऐसे संस्थानों में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों की शिकायतों के निवारण के लिए अवसर प्रदान करना है।
हर विश्वविद्यालय में शिकायत निवारण समिति का गठन होगा। इसमें अध्यक्ष एक प्रोफेसर होंगे। चार प्रोफेसर सदस्य के रूप में काम करेंगे। इसके अलावा छात्रों में से एक प्रतिनिधि होंगे। अध्यक्ष, और सदस्यों में से कम से कम एक सदस्य महिला एक पिछड़ा, और अजा, जजा से होना चाहिए। अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल दो वर्ष का होगा।
बताया गया कि छात्रों की शिकायत निवारण समिति के निर्णय से पीडि़त कोई सीधे छात्र 15 दिनों के भीतर लोकपाल के समक्ष अपील कर सकता है। शिकायत निवारण समिति के निर्णयों के खिलाफ अपीलों को सुनने और उस पर निर्णय लेने के लिए लोकपाल के रूप में एक या अधिक अंशकालीन पदाधिकारी नियुक्त किए जा सकते हैं।
सभी विश्वविद्यालयों में लोकपाल की नियुक्ति की जा सकती है। लोकपाल के दायरे में न सिर्फ सरकारी बल्कि निजी और डीम्ड विश्वविद्यालय आएंगे। बताया गया कि किसी संस्थान में घोषित प्रवेश नीति के खिलाफ प्रवेश दिया जाता है, तो शिकायतें की जा सकती है। यानी प्रवेश से जुड़ी अनियमितताओं की पड़ताल हो सकती है।
शिकायतों में मसलन, किसी भी विद्यार्थी द्वारा ऐसे संस्थान में प्रवेश के लिए प्रयोजन से जमा किए गए दस्तावेज जो कि उपाधि, डिप्लोमा या किसी अन्य पुरस्कार के रूप में हो, उनको अपने पास रख लेने या वापस करने से इंकार करना ताकि ऐसे किसी पाठ्यक्रम या अध्ययन कार्यक्रम के संबंध में छात्र को किसी शुल्क अथवा शुल्कों के भुगतान के लिए तैयार किया जा सके, अथवा मजबूर किया जा सके, जिसमें छात्र अध्ययन ही नहीं करना चाहता है।
विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए संस्थान द्वारा अपनाई गई गैर पारदर्शी अथवा अनुचित पद्धतियों की शिकायत की लोकपाल पड़ताल कर सकता है। अजा, जजा, और अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला, अल्पसंख्यक, और दिव्यांग श्रेणियों के विद्यार्थियों की कथित भेदभाव की शिकायत और पड़ताल हो सकती है। यही नहीं, संस्थान के कानूनों अध्यादेशों, नियमों, और दिशा निर्देशों के विपरीत कोई कार्रवाई किए जाने पर लोकपाल में शिकायत की जा सकती है।
लोकपाल की नियुक्ति –
सेवानिवृत्त कुलपति या सेवानिवृत्त प्रोफेसर(जिन्होंने डीन, विभाग प्रमुख के रूप में काम किए होंगे) और उनके पास राज्य, केंद्रीय विश्वविद्यालय अथवा राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में काम करने का अनुभव हो। या जिले में न्यायाधीश के रूप में 10 साल का अनुभव होगा।
लोकपाल को पद ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए अथवा 70 वर्ष की आयु पूरी करने तक, इनमें से जो भी पहले हो नियुक्त किया जाएगा। एक और कार्यकाल के लिए पुर्ननियुक्ति के पात्र होंगे। कदाचरण, और दुव्र्यवहार के आरोपों पर विश्वविद्यालय लोकपाल को हटा सकता है।
लोकपाल को हटाने का आदेश तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा जांच नहीं कर ली जाती है, जो हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के पद से नीचे के पद का व्यक्ति न हो, और जिसमें लोकपाल की सुनवाई के लिए उचित अवसर नहीं दिया गया। लोकपाल की नियुक्ति नहीं करने पर यूजीसी विश्वविद्यालयों का अनुदान तक रोक सकती है।
शिकायत की प्रक्रिया –
हर विश्वविद्यालय को तीन माह के भीतर एक ऑनलाइन पोर्टल तैयार करना होगा। जहां कोई भी पीडि़त छात्र अपनी शिकायत निवारण के लिए आवेदन कर सकते हैं। छात्र शिकायत निवारण समिति सुनवाई के लिए एक तिथि निर्धारित करेगी, और इसकी जानकारी संस्थान और पीडि़त व्यक्ति को दी जाएगी। पीडि़त छात्र या तो व्यक्तिगत रूप से पेश हो सकता है। अथवा प्रतिनिधि को अधिकृत कर सकता है। समय सीमा के भीतर निवारण नहीं होने पर प्रकरण लोकपाल को भेजा जा सकता है। संस्थान को लोकपाल की सिफारिशों का अनुपालन करना होगा। शिकायत छुटी अथवा तुच्छा पाए जाने पर लोकपाल शिकायतकर्ता के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई के लिए सिफारिश कर सकता है।