
रायपुर. नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है।* वे ज्ञान, तप और आत्मसंयम की देवी मानी जाती हैं। मान्यता है कि उनकी पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। आध्यात्मिक गुरु पंडित कमलापति त्रिपाठी प्रमोद बताते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी विशेषकर विद्यार्थियों के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि वे बुद्धि और विवेक प्रदान करती हैं।
ब्रह्म मुहूर्त में पूजा का विशेष महत्व
पंडित त्रिपाठी के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा ब्रह्म मुहूर्त में करना अत्यंत शुभ होता है। इस समय स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें और घर के मंदिर में या आसन बिछाकर उनकी मूर्ति या चित्र की विधिवत पूजा करें।
भोग में पंचामृत अर्पित करें
मां को फूल, अक्षत, रोली और चंदन चढ़ाने के बाद भोग में पंचामृत अर्पित करना चाहिए। पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और चीनी से बनता है। इसमें केसर और मेवे डालने से यह और भी पवित्र माना जाता है। साथ ही पान, सुपारी और लौंग भी अर्पित करने की परंपरा है।
अकाल मृत्यु के संकट से बचाव
धार्मिक मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। भक्त उन्हें पंचामृत के साथ गुड़ या चीनी का भोग भी लगाते हैं। पूजा के बाद आरती करके प्रसाद वितरित करना चाहिए।
बीज मंत्र का जाप अवश्य करें
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र है – “ह्रीं श्री अंबिकायै नमः”। इस मंत्र का जाप पूजा के दौरान करना अत्यंत फलदायी माना गया है। इसके अलावा “या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” का जप भी शुभ फलदायी होता है।
मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
1. स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजा आरंभ करें।
3. पुष्प और अक्षत अर्पित करें।
4. दीप और धूप जलाकर आरती करें।
5. मंत्र “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” का जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी के प्रमुख मंत्र
मूल मंत्र: ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः
वंदना मंत्र: दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
पूजा का महत्व और लाभ
मां ब्रह्मचारिणी तपस्या और आत्मसंयम की प्रतीक हैं। उनकी उपासना से साधक को धैर्य, विवेक और ज्ञान की प्राप्ति होती है। विद्यार्थी, साधक और तपस्वी विशेष रूप से उनके पूजन से लाभान्वित होते हैं।