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कोरोना पॉजिटिव डॉक्टर; मरीजों की जान बचाते हुए खुद हो गए संक्रमित, ठीक होते ही लौटे फर्ज निभाने

रायपुर. लगातार ढाई महीने तक संभाली कोरोना वार्ड की कमान, रोज 18 घंटे की ड्यूटी, 80 दिन बाद घर गया तब भी बेटियाें काे नहीं लगा सका गले

मुझे 22 मार्च काे एम्स के कोविड वार्ड का इंचार्ज बनाया गया। तब से लेकर अब तक अपने परिवार से दूर हूं। लगातार ढाई महीने तक बिना छुट्‌टी लिए ड्यूटी की। रोज 18 घंटे ड्यूटी पर मौजूद रहता। लगातार 75 दिन ड्यूटी के बाद अचानक ख्याल आया कि एक बार टेस्ट करा लेना चाहिए। ये मेरा सिक्स्थ सेंस ही था, जो ये कह रहा था कि शरीर में कुछ तो गड़बड़ है। 6 जून को रिपोर्ट आई तो मैं भी काेरोना पॉजिटिव निकला। मुझे न सर्दी थी और न बुखार। तुरंत एम्स में ही एडमिट हो गया। जब ड्यूटी पर था तो बच्चे वीडियो कॉल से बात करते थे। पूछते थे- पापा कब आओगे? हर बार उनसे यही कहता कि बेटा काेराेना काे हराते ही लाैट आउंगा। रिपाेर्ट पॉजिटिव आई तो बेटियों ने हंसते हुए कहा- पापा आप न हमारे पास आए और न हमें अपने पास बुलाया, हमारे बजाय कोरोना को बुला लिया। हफ्तेभर के इलाज के बाद 12 जून को मुझे डिस्चार्ज कर होम आइसोलेशन में रहने कहा गया। 80 दिन बाद अपने घर गया तो ऐसा लगा कि जंग से घायल होकर लौटा हूं। घर में वाइफ गायनेकाेलाॅजिस्ट डाॅ. मोनिका सुराना, 11 साल की बेटी वत्सला और 7 साल की बेटी प्रीति है। इतने दिन बाद सबको देखा, लेकिन गले तक नहीं लगा सका। किसी से मिले बिना खुद को एक कमरे में आईसोलेट कर लिया। 10 दिन तक घर में रहने के बावजूद कभी उनके साथ खाना तक नहीं खाया।

22 जून को दोबारा ड्यूटी पर लौट आया। अब फिर काेराेना पेशेंट की जिंदगी बचाने में जुटा हुआ हूं। ढाई महीने की ड्यूटी में दर्जनाें काेराेना पेशेंट का इलाज किया। 10 से ज्यादा पेशेंट्स से ताे इतने अच्छे संबंध बन गए हैं कि जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं भी काेराेना पॉजिटिव हाे गया हूं ताे उन्हाेंने काॅल कर मेरा हाैसला बढ़ाने की काेशिश की। अंजानों से जब ऐसा रिश्ता बनता है तो अच्छा लगता है।
-डाॅ. अतुल जिंदल, पीडियाट्रिशियन, एम्स

जरूरी सावधानी बरतने के बाद भी हुई संक्रमित, घबरा गई थी फैमिली

मैं नेत्र रोग विभाग में हूं। देश के कराेड़ाें लाेग जब लाॅकडाउन में घर में थे तब भी राेज ओपीडी में सुबह 8 से दाेपहर 2 बजे तक ड्यूटी पर रहती थी। हमारा वार्ड काेराेना वार्ड से काफी दूर है। जब हाॅस्पिटल के कुछ नर्सिंग स्टाफ की रिपाेर्ट पाॅजिटिव आई ताे मैं पहले से ज्यादा सचेत हाे गई। ज्यादा सावधानियां बरतने लगी। मास्क पहनती, ग्लव्स लगाती। सैनिटाइजर यूज करती। मुझे इतना विश्वास था कि मुझे काेराेना नहीं हाेगा। मरीजाें की आंखें चेक करते-करते खुद कब, कैसे संक्रमित हाे गई, आज तक समझ नहीं आया। 15 जून को मुझे सर्दी हुई। हल्का फीवर आया। 16 जून को अपने साथी डॉक्टर से ये बात शेयर की। 17 को अपना टेस्ट कराया। 19 जून को रिपोर्ट आई कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं। मैं शॉक्ड रह गई। मेरे साथी डॉक्टर का भी टेस्ट लिया गया, उन सबकी रिपाेर्ट निगेटिव आई। मेरी फैमिली बिलासपुर में रहती है। मैं एकदम अकेली हो गई थी। पैरेंट्स को पता चला तो वो काफी घबरा गए। उनका एक ही सवाल था कि तुम्हें कैसे हाे गया ? सच कहूं ताे इसका जवाब मेरे पास भी नहीं था। मैंने उन्हें समझाया कि ये हमारे काम का हिस्सा है। ठीक हाे जाऊंगी। काफी समझाइश के बाद वाे नाॅर्मल हुए और फिर मुझे अपना ख्याल रखने के तरीके समझाने लगे। राेज वीडियो कॉल करते। इस दौरान इम्यूनिटी बढ़ाने मैंने हेल्दी डाइट लेना शुरू किया। सीजनल फ्रूट्स और सलाद खाया। हर्ब्स वाला काढ़ा भी पीना शुरू किया। 19 से 27 जून तक एडमिट रही। अभी होम आइसोलेशन में हूं। मेरे रिश्तेदार और फ्रेंड्स ताे पढ़े-लिखे हैं, सपोर्टिव हैं। लेकिन मैंने महसूस किया है कि दूसरे काेराेना पाॅजिटिव के साथ देश में ठीक व्यवहार नहीं हाे रहा। काेराेना हाेते ही रिश्तेदार और साेसाइटी उन्हें अजीब नजराें से देखने लगते हैं। ये गलत है। मेरी तरह देश के लाखाें लाेग काेराेना हाेने के बावजूद ठीक हाे चुके हैं।
– डाॅ. निकिता खेस, रेसीडेंट डॉक्टर, अंबेडकर हॉस्पिटल
महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय के सम्मान में 1991 से हर साल 1 जुलाई काे मनाया जाता है डाॅक्टर्स डे। उनका जन्मदिवस और पुण्यतिथि दोनों इसी तारीख को आता है।

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