बहुत थक गया हूं, अब आराम करना चाहता हूं… कहकर आखिरी सफर पर निकल गए राहत साहब
मशहूर शायर राहत इंदाैरी नहीं रहे, उनके दोस्त और साथी कवि पद्मश्री सुरेंद्र दुबे बता रहे हैं उनसे जुड़ी यादें
पद्मश्री सुरेंद्र दुबे, प्रख्यात कवि बात 24 फरवरी की है। मुंगेली में कवि सम्मेलन और मुशायरा था। मंच संचालन मेरे जिम्मे था। खुले आसमान के नीचे सजे मंच पर आसीन कवियों और शायरों में सबसे बड़ा नाम थे राहत इंदौरी। एक हजार से ज्यादा लाेग उन्हें सुनने आए थे। रात 9 बजे कार्यक्रम शुरू हुआ। अचानक रिमझिम बारिश हाेने लगी। हमें लगा कुछ देर में बारिश थम जाएगी, लेकिन हम गलत थे। बारिश और तेज हाे गई। शेड नहीं था, इसलिए बारिश से बचने राहत भाई मंच के पीछे बने कमरे की ओर बढ़े। मैं उनके पास पहुंचा। हम कार्यक्रम समाप्त करने के बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि राहत भाई ने कहा मैं प्रस्तुति दूंगा। आप छाते की व्यवस्था कीजिए। उस दिन उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी। मैंने कहा- आपकी सेहत ठीक नहीं लग रही। आपकी बायपास सर्जरी भी हुई है। आप प्रस्तुति मत दीजिए, मंच हम संभाल लेंगे। वाे बाेले- डाॅक्टर साहब मेरे मुरीद आए हैं, उन्हें निराश नहीं कर सकता। छाता पकड़कर वाे जैसे ही मंच पर पहुंचे लाेगाें ने तालियाें से उनका इस्तकबाल किया। शहरों में तो बारूदों का मौसम है, गांव चलो ये अमरूदों का मौसम है… पंक्तियाें से उन्हाेंने प्रस्तुति की शुरुआत की। इसके बाद अपनी वजनदार आवाज में उन्हाेंने शायरी पढ़ी-
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चांद पागल है, अंधेरे में निकल पड़ता है…
लगभग 10 मिनट तक वाे छाता पकड़कर शायरी पढ़ते रहे और तालियां बजती रहीं। लाेग अपने चहेते शायर काे भीगते हुए सुनते रहे। इसी बीच आयाेजकाें ने तय किया कि अब कार्यक्रम उस हाेटल के हाॅल में कराया जाएगा, जहां राहत भाई और मैं ठहरे थे। हम सब हाेटल के लिए रवाना हुए। हाेटल पहुंचकर राहत भाई ने कमरे में जाने की इच्छा जताई। मैं उनके साथ कमरे तक गया। इस बीच वो बोले- डाॅक्टर साहब मुझे जो पढ़ना था, वाे पढ़ चुका हूं। अब रेस्ट करूंगा। जब मैं कमरे से लाैट रहा था, तब गेट बंद करते वक्त उन्हाेंने फिर वही बात दाेहराई कि मुझे क्षमा करिएगा, बहुत थक गया हूं, अब आराम करना चाहता हूं…। ये मेरी उनसे आखिरी मुलाकात और आखिरी बातचीत थी। मुझे नहीं पता था कि वाे इतनी लंबी रेस्ट पर जाने वाले हैं। राहत भाई के देहांत की खबर सुनने के बाद से उनके यही शब्द कान में गूंज रहे हैं।
उनका अंग-अंग शायरी कहता था…
मंच पर जिन्हें हिंदी या उर्दू मे शायरी करने का शाैक हाे उन्हें राहत को सुनना चाहिए। वाे शायरी सिर्फ पढ़ते नहीं थे, बल्कि उसे जीते थे। प्रस्तुति के दाैरान उनका अंग-अंग शायरी कहता था। वाे शायरी काे अपनी आंखाें, हाथाें और बाॅडी लैंग्वेज से विजुअलाइज कर देते थे। वो पूरी सभा को सम्मोहन करने की ताकत रखते थे। मैंने बारिश में भीगते हुए भी उन्हें सुनने के लिए लाेगाें काे आतुर देखा है।
14 दिन सादा भोजन किया
बात मई 2018 की है। हम बिहार में लगातार 14 कवि सम्मेलन कर रहे थे। हम एक ही कमरे में ठहरे थे। पहले दिन जब भोजन की बारी आई तो उन्होंने कहा, पंडित जी आप साथ हैं तो मैं भी 14 दिन पंडित बनकर रहूंगा। वो वादे के पक्के निकले। नॉनवेज को हाथ लगाए बिना, पूरे 14 दिन उन्होंने सादा भोजन किया।
राहत भाई को सुनने अधिकारी ने एक घंटे की दी खास छूट
टाटानगर में राहत भाई और मेरा कवि सम्मेलन था। किसी कारणवश उस दिन कार्यक्रम तय समय पर समाप्त करने का काफी दबाव था। राहत भाई ने जब शायरी पढ़ना शुरू किया तो लोग उसमेंं खोते चले गए। कार्यक्रम समाप्त करने का समय आया तो वहां मौजूद एक बड़े अधिकारी ने खासतौर पर राहत इंदौरी को सुनने के लिए एक घंटे कार्यक्रम और जारी रखने की छूट दी।
50 से ज्यादा बार आए छत्तीसगढ़
खुद काे खुशनसीब मानता हूं कि मुझे उनके साथ 200 से ज्यादा कवि सम्मेलन करने का माैका मिला। मैं उन्हें राहत भाई कहता था और वाे मुझे डाॅक्टर साहब। छत्तीसगढ़ में उन्हाेंने 50 से ज्यादा बार प्रस्तुति दी हाेगी। ज्यादातर माैकाें पर मैं उनके साथ था।
लोग हंसते हैं तो मैं भी हंसता हूं: मैं मंच से जब छत्तीसगढ़ी कविताएं पढ़ता था तो राहत भाई भी ठहाके लगाते थे। मैंने उनसे एक दिन पूछा- आपको छत्तीसगढ़ी कविताएं समझ आती हैं क्या? वाे बाेले- बात आधी समझ आती है और आधी नहीं, लेकिन लोग हंसते हैं, इसलिए मैं भी हंस पड़ता हूं।
थकान के बावजूद सफर में एक भी बार नहीं ली झपकी…
कवि मीर अली मीर, राज्य अलंकरण से सम्मानित। मुझे चार बार इंदौरी साहब के साथ मंच साझा करने का माैका मिला। जांजगीर चांपा के काव्य पाठ से जुड़ा प्रेरक किस्सा मुझे याद है। रात एक बजे तक कार्यक्रम चला। राहत साहब काे दूसरे दिन सुबह की फ्लाइट पकड़नी थी। हम रात को ही बाय रोड रायपुर के लिए निकले। थके हाेने के बावजूद रास्ते भर उन्होंने एक भी बार झपकी नहीं ली। मैंने कहा भी कि आप आराम कर लीजिए, मैं जाग रहा हूं। वाे बाेले- सफर में कभी नहीं सोना चाहिए, हम सोएंगे तो ड्राइवर को भी झपकी आ सकती है। इस चर्चा के कुछ देर बाद मेरी आंख लग गई। उन्हाेंने चुटकी लेते हुए कहा, मीर साहब आप तो हमसे उम्र में बहुत छोटे हो, फिर भी झपकी ले रहे हो…। ये सुनकर मेरी नींद उड़ गई, फिर मैं पूरे सफर उनसे बात करता आया।
जब राहत साब मंच पर गिर पड़े : लगभग दाे साल पहले इंडोर स्टेडियम में कवि सम्मेलन था। राहत साहब वाॅशरूम जाने के लिए खड़े हुए और लड़खड़ाकर गिर गए। हमने उन्हें उठाया। जब प्रस्तुति की बारी आई ताे हम सब उनकी सेहत के लिए घबराए हुए थे। लेकिन उन्हाेंने अपने चिर-परिचित अंदाज में जाेशीली प्रस्तुति दी। किसी काे अहसास तक नहीं हाेने दिया कि उनकी तबियत खराब है।