पिता और पत्नी की मौत के अगले दिन से ड्यूटी, 6 माह से किसी त्यौहार में परिवार के साथ नहीं रह सके
भिलाई – चीनी वायरस ने विश्वभर को एक ऐसी जंग में धकेल दिया, जिसमें अपार दर्द तो है ही इसके साथ ही जोश, जज्बे और त्याग के एक से बढ़ एक उदाहरण सामने आ रहे हैं। जिले के कोरोना योद्धाओं ने इस वायरस से आम जन को बचाने के लिए अद्वितिया करके दिखा दिया है। बीते 6 महीने में कोई परिवार के साथ न रक्षाबंधन बीता पाया, न ही कोई छुट्टी ली। यही नहीं एक वॉरियर ऐसे भी जिनके पिता और पत्नी की मौत हो गई, वह सिर्फ दाह संस्कार में शामिल होने के बाद पुन: कोरोना से जारी आर-पार की लड़ाई में शामिल हो गए हैं। ऐसे कई उदाहरण है जो कोरोना से जंग लड़ रहे हैं।
इन योद्धाओं के त्याग, जोश व जज्बे को सलाम, मुसीबतें आई फिर भी घुटने नहीं टेके
काशी प्रसाद डग्गर: लाल बहादुर शास्त्री सुपेला अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस के काशी प्रसाद डग्गर ने गजब का त्याग दिखाया है। जुलाई में इनके पिता की मौत हुई। श्मशान घाट से ही जिम्मेदारी पूरी कर लौट आए। अगस्त में पत्नी नहीं रही, एक दिन की छुट्टी पर गए और लौटे तबसे डटे हुए हैं। 350 शवों का पोस्टमार्टम तो किया ही 18 की जांच भी की है।
विजय कुमार सैजुले: शहरी परिवार कल्याण विभाग में पर्यवेक्षक के पर पद सेवा देने वाले विजय कुमार सैजुले में जंग के दौरान अद्वितीय जोश देखेन को मिला है। भिलाई के पॉजिटिव मरीजों को क्विक उपचार दिलाना इन्हीं के जिम्मे है। मई से ही अपनी पूरी टीम के साथ सुबह 10 बजे से मोर्चे पर लगे रहे तो रात 10 के बाद छुट्टी मिल रही है।
लूरद मैरी: शास्त्री अस्पताल सुपेला की लैब में जीवनदीप समिति द्वारा तैनात लैब टेक्रिशियन लूरद मैरी ने अतुलनीय जज्बा दिखाया है। इस दौर में जब तीन-गुना पेमेंट देने पर भी कर्मचारी काम करने को नहीं मिल रहे, यह 4000 रु. मासिक मानदेय पर फ्रंट लाइन में डट कर कोरोना को चुनौती दे रही हैं। सैंपल लेने की इन्हें जिम्मेदारी मिली है। जिसे बखूबी निभा रही है।