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खूबसूरत कबीरधाम : स्वर्ग सी मनमोहक चिल्फ़ी की वादियां, श्रद्धालुओं को खींचता भोरमदेव का मंदिर, दूर-दूर से भ्रमण पर आ रहे पर्यटक

कबीरधाम। ठंड बढ़ते ही देश विदेश से सैलानी कबीरधाम जिला पहुंच रहे हैं। जिले के विभिन्न पर्यटन स्थलों में पहुंच कर पर्यटक आनंदित हो रहे हैं।

आपको बताते चले कि कबीरधाम जिले में यू तो पर्यटक पूरे वर्ष भर आते है और राजा भोरमदेव का दर्शन लाभ लेते है। परंतु ठंड आते ही यहां सैलानियों की भीड़ और ज्यादा लगने लगती है, जो जिले के विभिन्न पर्यटन स्थल पर घूम-घूम कर यादे संजोते है।

भोरमदेव अभ्यारण –

कबीरधाम का भोरमदेव अभ्यारण मैकल की हरियर वादियों में फैला हुआ है। 352 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तारित यह अभ्यारण अपने में अनेक प्राकृतिक एवं प्रागैतिहासिक विशेषताओं को समेटे हुए है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व अचानकमार टाइगर रिजर्व दोनों का संरक्षण इसे सम्पूर्णता प्रदान करता है।

बता दे कि भोरमदेव अभ्यारण वर्ष 2001 में अधिसूचना हुआ। तब नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था। चिल्फी घाटी के साथ ही कान्हा नेशनल पार्क का भी एक बढ़ा बफर जोन नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में आ गया। चूँकि भोरमदेव और चिल्फी का यह क्षेत्र कान्हा नेशनल पार्क और अचानकमार के बीच पहले से ही एक कारीडोर के रूप में था। वन्यप्राणी की आवाजाही इधर से ही होती रही है। इसलिए वन्य प्राणियों की प्रजातियों में भी स्वाभाविक रूप से समानता पाई जाती है। इसका नामकरण भी यहाँ छत्तीसगढ़ का खजुराहो नाम से प्रतिष्टित भोरमदेव मंदिर के नाम पर ही अधिसूचित किया गया।

भोरमदेव का इतिहास –

भोरमदेव मंदिर अभयारण्य का विस्तार 800 53′ पूर्वी अक्षांश से 810 10′ अक्षांश और 210 54′ उत्तरी देशान्तर से 220 15′ के बीच है। उत्तर में इसका विस्तार डिंडौरी जिला की दक्षिणी सीमा तक है, तो दक्षिण में मण्डलाकोंन्हा गाँव की उत्तरी सीमाओं को छूती है। इसी तरह पालक गाँव से छपरी गाँव की पश्चिमी सीमा अभ्यारण्य की पूर्वी सीमा होती है, तो पश्चिम में यह अभयारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की पूर्वी सीमा पर स्थित बालाघाट जिले के पाचवा गाँव तक विस्तारित है।

भोरमदेव मंदिर, कवर्धा –

भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।

मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।

चिल्फी घाटी –

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 यहाँ से गुज़रता है। यह 807 मीटर (2648 फुट) की ऊँचाई पर स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहाँ का मौसम रमणीय है और पास के प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस कारण इसे कभी-कभी “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” कहा जाता है।

सरोदा दादर (चिल्फी) –

एक सुंदर, सुरम्य जगह है जो चिल्फी घाटी पर स्थित है, जहां से पहाड़ों की असली सुंदरता, सूर्योदय और सूर्यास्त के दुर्लभ दृश्य, दिन के बदलते मिज़ाज और बादलों के बदलते आकार का आनंद कोई भी आसानी से ले सकतें हैं, ट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह उपयुक्त जगह है। पर्यटन के क्षेत्र को बढ़ावा देने राज्य सरकार की सहायता से जिला प्रशासन द्वारा पर्यटकों को सुविधा देने एवं उन्हें आकर्षित करने के लिए सर्वसुविधायुक्त रिसोर्ट, आकर्षक कुटीर एवं अन्य आश्रय स्थलों का निर्माण किया जा रहा है।

रानी दहरा –

जलप्रपात छत्तीसगढ़ राज्य में कबीरधाम ज़िला बोड़ला ब्लॉक में जिला मुख्यालय से जबलपुर मार्ग पर करीब 35 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यह जलप्रपात भोरमदेव अभयारण्य के अंतर्गत आता है। रियासत काल में यह मनोरम स्थल राजपरिवार के लोगों का प्रमुख मनोरंजन स्थल हुआ करता था। रानी दहरा मैकल पर्वत के आगोस में स्थित है। तीनों ओर पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर करीब 90 फुट की ऊंचाई पर स्थित जलप्रपात बर्बस ही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है।

पचराही –

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले का एक छोटा सा कस्बा है। हाल में ही यहाँ पुरातात्विक उत्खनन में प्राचीन मंदिर, बैल, लोहे का चुल्हा सहित कई सिक्के मिले हैं। इससे पचराही पुरातात्विक विशेषताओं को लेकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभर आएगा। कल्चुरी राजाओं के इतिहास का गवाह यह इलाका देश के खास उत्खनन केंद्रों में गिना जाने लगा है।

पचराही एक नैसर्गिक और पुरातात्विक स्थल है। पुरातनकाल में राजाओं ने इस स्थान पर मंदिर व शहर इसलिए बसाया था क्योंकि वर्तमान कंकालिन मंदिर के पास आकर हाफ नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बह रही है। जिन स्थानों पर नदी उत्तर यानी ईशान कोण में बहती है वह भाग हिन्दुशास्त्रों के मुताबिक सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। ईशान कोण पर ईश्वर का निवास होता है। पचराही की भांति ही छत्तीसगढ़ में मदकू-द्वीप, सिरपुर भी ईशान कोण पर बहती है।

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

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