छत्तीसगढ़रायपुर

छत्तीसगढ़ से खास : वनवास के दौरान इन 5 स्थानों में रुके थे भगवान राम

जगदलपुर। देश में भगवान श्रीराम के नाम के साथ दंडकारण्य (वर्तमान बस्तरांचल) के जुड़ाव की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उत्तर में महानदी से दक्षिण में गोदावरी नदी तक विस्तारित क्षेत्र को दंडकारण्य माना जाता है। भगवान राम जब माता सीता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष वनवास पर थे तो उनका काफी समय दंडकारण्य में भी बीता था। यहां कण-कण में राम की विद्यमानता मानी जाती है। सुकमा जिले में एक गांव इंजरम है, जिसका दोरली बोली में अर्थ ही ‘अभी राम आए’ हैं।

माना जाता है कि वनवास काल के दौरान श्रीराम ने यहां शिव और माता पार्वती की अराधना की थी। बस्तर के किसी भी स्थान पर चले जाएं, वहां भगवान राम से जुड़ी मान्यता या जनश्रुति जरूर सुनने को मिल जाएगी। महानदी से गोदावरी नदी के बीच विस्तारित क्षेत्र में भगवान राम से जुड़े साक्ष्य मिल चुके हैं। कई शोध संस्थानों ने इस बात की पुष्टि कि है कि भगवान दंडकारण्य के रास्ते ही दक्षिण की ओर बढ़े थे।

बस्तर में भगवान राम की महिमा का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि आदिवासी समाज के लगभग तीसरे-चौथे व्यक्ति के नाम के साथ राम शब्द जुड़ा मिलता है। बस्तर के आदिवासियों के जितने निकट माता दंतेश्वरी व महादेव हैं, उतने ही प्रभु श्रीराम। जब पूरा देश इस वक्त प्रभु श्रीराम की भक्ति में डूबा हुआ है तो बस्तर के गांव से लेकर शहर तक में प्रभु के आगमन का भव्य उत्सव मनाया जा रहा है।

रामपाल में वनवास के दौरान भगवान ने की थी शिव आराधना

बस्तर से 18 किमी दूर रामपाल गांव में एक शिवालय है। इस मंदिर को लेकर किंवदंती है कि जब भगवान वनवास काल के दौरान यहां पहुंचे तो उन्होंने यहां शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। कहा जाता है कि मंदिर के जिस शिवलिंग की वर्तमान में पूजा की जा रही है, वह भगवान राम के हाथों से स्थापित है।

इस मंदिर को बस्तर का रामेश्वर भी कहा जाता है। जिस तरह रामेश्वरम में भगवान श्रीराम ने लंका कूच से पहले शिवलिंग स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी, उसी तरह उत्तर से दक्षिण भारत में प्रवेश से पहले उन्होंने बस्तर के रामपाल में भी शिव आराधना की।

दक्षिण प्रवेश से पहले प्रभु राम ने रामपाल के बाद सुकमा जिले के रामाराम के चिटपिट्टीन माता मंदिर में आराधना की थी। रामपाल के शिवलिंग को रामायणकालीन होने की पुष्टि विद्वानों और शोध संस्थानों ने की है। वर्तमान में जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो इस मंदिर को लेकर चर्चा बढ़ गई है। ऐसे लोग जो इस मंदिर का संबंध भगवान राम से होना जानते हैं, वे यहां भगवान शिव की पूजा करने पहुंच रहे हैं।

सबरी तट पर गुप्तेश्वर में किया चातुर्मास

बस्तर से लगे ओडिशा में शबरी नदी के किनारे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। यह मंदिर एक गुफा में है। इस स्थान को लेकर जनश्रुति है कि भगवान राम ने यहां पर अपना चातुर्मास पूरा करते हुए भगवान शिव की विशेष आराधना की थी। चार महीने तक वे गुफा में ही रहे थे और यहां पर लगातार भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। इस स्थान पर हर साल महाशिवरात्रि पर एक बड़ा मेला भरता है।

सुकमा के रामाराम मंदिर में चिटमिट्टिन माता की पूजा-अर्चना की

कहा जाता है कि सबरी नदी के तट से होकर भगवान राम बस्तर से दक्षिण भारत की ओर बढ़े तो उन्होंने सुकमा जिले के रामाराम स्थित मंदिर में माता की आराधना की। आज यह स्थान राम वनगमन पथ परियोजना के तहत विशेष तौर पर विकसित किया गया है। सुकमा और रामराम गांव के आदिवासी बताते हैं कि वे अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं कि भगवान ने यहां पूजा-अर्चना की और दक्षिण की ओर बढ़े। मंदिर के आसपास कई ऐसे साक्ष्य हैं, जो इस दावे को पुख्ता करते हैं कि प्रभु श्रीराम ने यहां समय बिताया था।

श्रीराम ने चित्रकोट में की थी शिवलिंग की स्थापना

बस्तर में राम वनगमन पथ को लेकर शोध कर रहे शोधकर्ता विजय भारत ने बताया किए भगवान ने वनवास के तीसरे पड़ाव में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रम बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। जब चित्रकोट पहुंचे तो यहां ऋषि मुनियों के आश्रम में राम भगवान सीता माता और लक्ष्मण ने अपना कुछ समय बिताया। इस दौरान एक शिवलिंग की स्थापना की, जहां अब भव्य मंदिर बन गया है।

तीरथगढ़ के तीन में से दो कुंड राम-सीता के नाम पर

चित्रकोट के बाद भगवान बस्तर के ही पर्यटन स्थल तीरथगढ़ पहुंचे यहां के पुजारी बताते हैं कि तीरथगढ़ लक्ष्मी कुंड, सीता कुंड और रामकुंड है। इसी कुंड में भगवान राम और माता सीता ने स्नान किया था। इसके बाद वे कोटमसर गुफा की ओर बढ़ गए। तीरथगढ़ के शिव मंदिर में राम भगवान के पद चिह्न आज भी हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक हजार वर्ष पहले किया गया था।

कोटमसर गुफा में कई कलाकृतियां

भगवान राम के बस्तर के कोटमसर गुफा भी पहुंचने की भी मान्यता है। गुफा में ऐसी कई कलाकृतियां बनी हुई दिखाई देती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं। ऐसा मानना है कि गुफा के अंतिम छोर पर भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर पूजा भी की थी, लेकिन अभी के समय में वहां तक पहुंचने का मार्ग बंद है। शोधकर्ता बताते हैं कि बस्तरवासियों की भगवान राम से काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है।

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!