कबीरधाम जिले में स्वाइन फ्लू की रोकथाम और बचाव के लिए अलर्ट जारी
जिला चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू बचाव के लिए पृथक से वार्ड बनाया
कवर्धा- संक्रामक बीमारी स्वाइन फ्लू की रोकथाम और बेहतर प्रबंधन के लिए जिला चिकित्सालय कबीरधाम सहित सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिया गया है। स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए जिला चिकित्सालय सहित जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आवश्यक दवाइयों के साथ तैयारियां कर ली गई है। जिला चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए अलग से वार्ड भी बनाया गया है। इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.के.के.गजभिये ने बताया कि जिला चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू की रोकथाम एवं बचाव के लिए अलग से वार्ड एवं दवाइयों की व्यवस्था कर ली गई है। सभी खण्ड चिकित्सा अधिकारियों एवं मैदानी अमलों को स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखने पर तत्काल नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराकर जिला कार्यालय को सूचित करने निर्देशित किया है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी श्री गजभिये ने बताया कि स्वाइन फ्लू एक तेजी से फैलने वाली संक्रामक बीमारी है, जिससे बचने के लिए आपको इसके बारे में जानकारी होना बेहद आवश्यक है। उन्होंने स्वाइन फ्लू एक तीव्र संक्रामक रोग है, जो एक विशिष्ट प्रकार के एंफ्लुएंजा वाइरस (एच-1 एन-1) के द्वारा होता है। प्रभावित व्यक्ति में सामान्य मौसमी सर्दी-जुकाम जैसे ही लक्षण होते हैं, जैसे – नाक से पानी बहना या नाक बंद हो जाना, गले में खराश, सर्दी-खांसी,बुखार, सिरदर्द, शरीर दर्द, थकान, ठंड लगना, पेटदर्द, कभी-कभी दस्त, उल्टी आना, कम उम्र के व्यक्तियों, छोटे बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को यह तीव्र रूप से प्रभावित करता है। इसका संक्रमण रोगी व्यक्ति के खांसने, छींकने आदि से निकली हुई द्रव की बूंदों से होता है। रोगी व्यक्ति मुंह या नाक पर हाथ रखने के पश्चात जिस भी वस्तु को छूता है, पुनः उस संक्रमित वस्तु को स्वस्थ व्यक्ति द्वारा छूने से रोग का संक्रमण हो जाता है। संक्रमित होने के पश्चात एक से सात दिन के अंदर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए महत्वपूर्ण टिप्स
किसको अधिक संभावना : कमजोर व्यक्ति, बच्चे, गर्भवती महिलाएं, वृद्धजन एवं जीर्ण रोगों से ग्रसित व्यक्ति।
बचाव कीजिए –
खांसी, जुकाम, बुखार के रोगी दूर रहें।. आंख, नाक, मुंह को छूने के बाद किसी अन्य वस्तु को न छुएं व हाथों को साबुन, एंटीसेप्टिक द्रव से धोकर साफ करना चाहिए। खांसते, छींकते समय मुंह व नाक पर कपड़ा रखना चाहिए। सहज एवं तनावमुक्त रहिए। तनाव से रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कम हो जाती है जिससे संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। स्टार्च (आलू, चावल आदि) तथा शर्करायुक्त पदार्थों का सेवन कम करिए। इस प्रकार के पदार्थों का अधिक सेवन करने से शरीर में रोगों से लड़ने वाली विशिष्ट कोशिकाओं (न्यूट्रोफिल्स) की सक्रियता कम हो जाती है। दही का सेवन नहीं करें, छाछ ले सकते हैं। खूब उबला हुआ पानी पीयें व पोषक भोजन व फलों का उपयोग करना चाहिए। सर्दी-जुकाम, बुखार होने पर भीड़भाड़ से बचें एवं घर पर ही रहकर आराम करते हुए उचित (लगभग 7-9 घंटे) नींद लेना चाहिए।
स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए सामान्य उपचार
स्वाइन फ्लू जैसे संक्रामक रोगों से बचने के लिए समान्य उपचार करना चाहिए। सामान्य उपचार में विशिष्ट आयुर्वेदिक पेय (काढ़ा) पीना चाहिए। इसे बनाने के लिए डेढ़ कप पानी लेकर उसमें हल्दी पाउडर (एक चम्मच), कालीमिर्च (तीन दाने), तुलसी के पत्ते (दो), थोड़ा जीरा, अदरक, थोड़ी चीनी को उबाल लें। एक कप रह जाने पर उसमें आधा नींबू निचोड़ दें। इसे गुनगुना ही सेवन करें। इसे दिन में 2-3 बार लिया जा सकता है। नाक में दोनों तरफ तिल तेल की 2-2 बूंदें दिन में 3 बार डालना चाहिए। रोजाना 2 से 3 तुलसी पत्ते का सेवन करना चाहिए।. गिलोय का काढ़ा या ताजा गिलोय का रस 20 मिली प्रतिदिन पीयें।. उपयुक्त मात्रा वयस्कों के लिए है, बालकों की उम्र के अनुसार मात्रा कम करें। स्वाइन फ्लू जैसे बुखार गले में खराब, सर्दी-जुकाम, खांसी व कंपकंपी आना, इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।