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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की तलाक के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी: अलग कमरे में सोना भी मानसिक क्रूरता

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक तलाक के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरे में सोने को मानसिक क्रूरता माना गया है। यह टिप्पणी डिविजन बेंच ने की, जिसमें जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल शामिल थे।

मामला बेमेतरा के एक दांपत्य विवाद से संबंधित था, जहां पति ने तलाक के लिए याचिका दायर की थी। पति और पत्नी के बीच खटास के बाद और पारिवारिक प्रयासों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ। शुरू में, पत्नी ने पति के साथ रहने से इन्कार कर दिया था, जिसके कारण दोनों एक ही घर में अलग-अलग कमरों में रहने लगे।

पारिवारिक समझाइश के बावजूद पत्नी का व्यवहार नहीं बदला, और वह पति के साथ वैवाहिक जीवन साझा करने में असमर्थ रही। जनवरी 2022 से भी, जब दोनों को बेमेतरा जाकर रहने के लिए कहा गया, पत्नी ने अलग कमरे में सोने की आदत नहीं छोड़ी। इसके कारण पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की।

पत्नी ने अपने बयान में पति के आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि शादी के बाद उन्होंने शांतिपूर्ण जीवन बिताया। पत्नी ने यह भी दावा किया कि पति के परिवार के सदस्यों के साथ व्यवहार में कोई समस्या नहीं थी। हालांकि, पति ने आरोप लगाया कि पत्नी के व्यवहार और उनके रिश्तेदारों के साथ संदेहजनक संबंधों ने मानसिक पीड़ा का कारण बने।

फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री मंजूर कर दी थी। पत्नी ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। डिविजन बेंच ने टिप्पणी की कि एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में सोना भी पति के प्रति मानसिक क्रूरता के रूप में माना जा सकता है।

इस फैसले के साथ, हाईकोर्ट ने दांपत्य जीवन में पारस्परिक सम्मान और सामान्य सह-अस्तित्व के महत्व को रेखांकित किया है, और इसने यह संकेत भी दिया है कि मानसिक क्रूरता के मामलों में अदालतें व्यापक दृष्टिकोण अपनाएंगी।

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

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