
रायपुर। छत्तीसगढ़ की बहुप्रतीक्षित ‘समावेशी ग्रामीण एवं त्वरित कृषि विकास (चिराग)’ परियोजना को बंद करने का ऐलान वर्ल्ड बैंक ने कर दिया है। वर्ल्ड बैंक ने परियोजना की धीमी प्रगति और लक्ष्यों को पूरा करने में विफलता पर गहरी नाराजगी जताई है।
वर्ल्ड बैंक का पत्र
वर्ल्ड बैंक के भारत में कार्यवाहक निदेशक द्वारा केंद्रीय वित्त मंत्रालय की एडिशनल सेक्रेटरी मनीषा सिन्हा को भेजे गए पत्र में परियोजना की विफलताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। इस पत्र की प्रतियां छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, कृषि विभाग की एसीएस और चिराग परियोजना के निदेशक को भी भेजी गई हैं।
प्रगति पर असंतोष : चिराग परियोजना को दिसंबर 2020 में मंजूरी मिली थी, लेकिन चार साल बीतने के बावजूद परियोजना में कोई खास प्रगति नहीं हुई।
वित्तीय वितरण : अब तक केवल 1.44 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 1 प्रतिशत) का वितरण हो पाया है।
लाभार्थियों तक नहीं पहुंचा लाभ : लक्षित समुदायों तक परियोजना अनुदान का कोई लाभ नहीं पहुंचा।
निराशाजनक दर्जा : अक्टूबर 2022 से परियोजना के विकास उद्देश्य और कार्यान्वयन प्रगति को ‘असंतोषजनक’ दर्जा दिया गया है।
समीक्षा बैठक का नतीजा: सितंबर 2024 में हुई त्रिपक्षीय पोर्टफोलियो समीक्षा बैठक में यह तय किया गया था कि परियोजना को पुनर्गठित करने के लिए 2024 के अंत तक कम से कम 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वितरण आवश्यक होगा। लेकिन यह लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ।
वर्ल्ड बैंक और IFAD का निर्णय
23 दिसंबर, 2024 को आयोजित बैठक में IFAD और वर्ल्ड बैंक दोनों ने परियोजना की वर्तमान स्थिति को निराशाजनक बताते हुए इसे बंद करने का अंतिम निर्णय लिया। दोनों वित्तीय संस्थानों ने यह स्पष्ट किया कि परियोजना के विकास उद्देश्यों को मौजूदा स्थिति में हासिल करना असंभव है।
क्या है चिराग परियोजना?
‘चिराग’ परियोजना का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विकास, जल संसाधन प्रबंधन और गरीबी उन्मूलन के लिए ठोस कदम उठाना था। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता और निष्प्रभावी कार्यान्वयन के चलते यह परियोजना अपेक्षित परिणाम देने में विफल रही।
आगे क्या?
परियोजना के बंद होने से राज्य के कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्रों में संभावित झटके लग सकते हैं। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार इस निर्णय के बाद क्या वैकल्पिक कदम उठाती है।
‘चिराग’ परियोजना का बंद होना राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण झटका है। वर्ल्ड बैंक और IFAD का यह निर्णय प्रशासनिक कार्यप्रणाली और परियोजना प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करता है।