एक जुझारू लिखइया का यूं चले जाना…
(साभार : पत्रकार परमेश्वर डड़सेना के फेसबुक वॉल से)
कवर्धा- पत्रकारिता के मिशन में ऐसे बहुत कम होते हैं… जैसे राजेश जोशी भैया थे। जुझारू, गम्भीर, समझ वाले और बेहद तेज तर्रार… ये सारे गुण इसलिए उनमें थे, क्योंकि वह पत्रकारिता को जीते थे।
15 नवम्बर 2011, मंगलवार की शाम लगभग 6 बज रहे होंगे… सीढ़ियां चढ़कर राजेश भैया लगभग हांफते हुए आए… हम दोनों पत्रिका (कवर्धा) में कार्यरत थे और ऑफिस ऊपरी मंजिल पर था। पहले कहीं फोन लगाया, फिर मुझसे बोले… परम… यार… बहुत बड़ी खबर है… (उनके चेहरे के भाव बिल्कुल वैसे थे, जैसे बहुत बड़ी खबर पर एक पत्रकार के होते हैं) मैंने पूछा क्या… वे बोले यार बाघ की हत्या हो गई है जंगल में… मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई… ये बहुत बड़ी सूचना थी। ज़िले के भीतरी क्षेत्र में उनके सूचना तंत्र बेहद मजबूत थे। यह सूचना उन्हें वहीं से आई थी। फिर इधर-उधर फोन से जानकारी लेने लगे। सूचना वाकई इतनी बड़ी थी कि वे कुर्सी पर टिक नहीं पा रहे थे। एक-दो जगह बात करके फिर बोले… घटना भोरमदेव अभ्यारण्य के जामुनपानी जंगल की है, जंगल विभाग के अधिकारी भी सम्भवतः रायपुर से आ रहे हैं। मैंने पूछा अब क्या करें… वे बोले बिना समय गंवाय मौके पर जाना चाहिए… ये जानते हुए भी की रात होने वाली है, कड़ाके की ठंड है, घने जंगल में जाना है। इसके बाद भी वे मौके पर जाना चाहते थे। यही उनका जुझारूपन था।
उन्होंने फिर फोन घुमाया शहर के जाने माने फोटोग्राफर भरत साहू भैया को, बोले जामुनपानी चलना है। वे कैमरा उठा रेडी हो गए। राजेश भैया फिर कुछ सोचकर बोले… यार चिल्फी के रास्ते तो पहुंचने में देरी होगी, क्योंकि उधर से दूरी ज्यादा है। अभ्यारण्य के भीतर वाले रास्ते से ही चलते हैं। दूरी कम पड़ेगी। उन्होंने खतरनाक रास्ता चुना था। पहाड़ी कच्चा, पथरीला रास्ता है, ऊपर से हिंसक जंगली जानवरों का भय, क्योंकि जंगल में हमें कोर एरिया से निकलना था। उन्होंने अपनी पल्सर निकली, वे राइड करने वाले थे, मैं उनके पीछे बैठा और मेरे पीछे भरत भैया। शाम लगभग 7 बजे हम निकल गए। वाकई उस खतरनाक जंगली रास्ते में ठंड ने हमारी हालत खराब कर दी थी। रास्ते में मांदाघाट के पास बंजारी मन्दिर के आगे एक तेंदुआ ने हमें क्रॉस किया। यह बेहद भयावह था। हम आगे बढ़े और किसी तरह मौके तक पहुंच गए। वहाँ पहुंचकर पता चला वह बाघिन थी। हमारे बाद मौके पर पहुंचे अफसर इतनी रात मौके पर हमें देख हैरान थे और परेशान भी। मौके पर पहुंचने की ही ताकत थी कि अगले 20-25 दिनों तक लगातार इंवेस्टिगेटिव स्टोरी लगती रही।
इन जैसी कई घटनाएं हैं, जो राजेश भैया के पत्रकारपने और जुझारूपन को दिखाती हैं। उन्होंने पूरा जीवन पत्रकारिता को दे दिया। पिछले लगभग 2 साल से स्वास्थ्य की समस्या थी। फिर भी पूरी गर्मजोशी से मिलते। ऐसा नहीं लगने देते कि उन्हें कोई तकलीफ है। आखिरकार मंगलवार रात उनका शरीर शांत हो गया।
पत्रकारिता के साथ निजी तौर पर मेरे लिए अपूरणीय क्षति है…
आप दिलों में रहेंगे भैया…
सादर नमन…