मालगाड़ी में तिरपाल बिना कोयला का परिवहन, सुप्रीम कोर्ट गाइड लाइन की अनदेखी

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एसईसीएल दीपका और गेवरा खदानो से प्रतिदिन 20 से 22 ट्रेनों के माध्यम से विभिन्न राज्यों में कोयले की आपूर्ति की जा रही है। कोरबा के पर्यावरणविद लक्ष्मी चौहान ने आरोप लगाया है कि ढुलाई के दौरान पर्यावरणीय मानकों और सुरक्षा नियमों का हरहाल में पालन होना चाहिए। खुले में कोयला भेजे जाने से धूल प्रदूषण, दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है।इस पर अंकुश लगाना अनिवार्य है ।
मालगाड़ी से कोयला ढुलाई के दौरान अक्सर देखा जा सकता है कि यदि कोयले से भरे बैगन को तिरपाल से नहीं ढका जाता है । अगर वैगन को ढककर भेजा जाए तो उड़ती धूल और रेल पटरियों पर कोयला गिरने जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है। इसके साथ ही चोरी और ऊपर से गुजर रही हाई टेंशन लाइनों से होने वाले हादसों पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा।
प्रबंधन को इस मामले में कड़ा कदम उठाना चाहिए, जिससे इस पर अंकुश लगाई जा सके ।
एक एसईसीएल अधिकारी ने स्पष्ट किया कि कोयला प्रेषण के बाद उसे तिरपाल से ढककर ले जाने की जिम्मेदारी उस संस्थान की होती है, जहां कोयला भेजा जा रहा है। उन्होंने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार रैक को तिरपाल से ढककर ले जाना अनिवार्य है और संबंधित संस्थान और रेलवे को इसका पालन करना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और पर्यावरणीय मानकों का पालन कड़ाई से किया जाए तो न सिर्फ प्रदूषण पर नियंत्रण होगा बल्कि स्थानीय लोगों को भी बड़ी राहत मिलेगी।