
नवरात्रि के चौथे दिन 25 सितंबर को मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। यह दिन आश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर पड़ता है और अगले दिन सुबह 9:34 बजे तक जारी रहेगा। मां कुष्मांडा अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करने के लिए जानी जाती हैं। ‘कुष्मांडा’ शब्द संस्कृत में कुम्हड़े से लिया गया है, और कुम्हड़े का भोग उन्हें अत्यंत प्रिय है। माता का वाहन सिंह है और उनके आठ हाथ हैं, जिनमें कमण्डल, धनुष-बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला शामिल हैं।
मां कुष्मांडा को थोड़ी भक्ति से भी प्रसन्न किया जा सकता है। लाल फूलों का भोग उन्हें विशेष प्रिय है। इस दिन माता की पूजा करने से परिवार में खुशहाली, स्वास्थ्य, यश, बल और लंबी उम्र की प्राप्ति होती है।
माता कुष्मांडा की कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिदेवों ने जब सृष्टि की रचना शुरू की, तब ब्रह्मांड अंधकार से भरा था। माता दुर्गा के कुष्मांडा रूप ने ब्रह्मांड का निर्माण किया। उनकी मुस्कान ने पूरे जगत में उजाला फैला दिया। मां कुष्मांडा सूर्यलोक में निवास करती हैं और उनके मुखमंडल की मुस्कान से सारा ब्रह्मांड प्रकाशित हुआ।
मंत्र और आरती
मंत्र:
ऊं कुष्माण्डायै नम:।
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:।
आरती:
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी,
मुझ पर दया करो महारानी… (पूरा आरती पाठ उपरोक्त वर्णन के अनुसार)।
माता कुष्मांडा का प्रिय भोग और रंग
भोग: मालपुआ, दही और हलवा माता को अर्पित किया जा सकता है।
रंग: हरा रंग माता का प्रिय है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहनने और अन्न का दान करने से माता का आशीर्वाद मिलता है।