छत्तीसगढ़ के आदिवासी युवाओं ने हिमालय में रचा इतिहास, ‘विष्णु देव रूट’ के नाम से खोला नया पर्वतारोहण मार्ग

छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले के आदिवासी युवाओं के एक दल ने भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में नई इबारत लिखी है। इस दल ने हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊँची जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोला है। इस रूट को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सम्मान में ‘विष्णु देव रूट’ नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि टीम ने बेस कैंप से यह कठिन चढ़ाई सिर्फ 12 घंटे में पूरी की — वह भी आल्पाइन शैली में, जिसमें कोई सहायक दल या फिक्स रोप नहीं होती।
दो महीने की कठोर तैयारी के बाद मिली सफलता
यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि टीम के पाँचों पर्वतारोही पहली बार हिमालय की ऊँचाइयों तक पहुँचे थे। सभी ने ‘देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया’ में प्रशिक्षण प्राप्त किया — जो जशपुर प्रशासन द्वारा विकसित भारत का पहला प्राकृतिक एडवेंचर प्रशिक्षण क्षेत्र है।
टीम को प्रशिक्षित करने में स्वप्निल राचेलवार (बिलासपुर), डेव गेट्स (USA) और सागर दुबे (रनर्स XP) ने अहम भूमिका निभाई। इन तीनों विशेषज्ञों ने युवाओं की तकनीकी, शारीरिक और मानसिक तैयारी के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया। दो महीनों की कठिन मेहनत और 12 दिनों के अभ्यास पर्वतारोहण के बाद यह चुनौतीपूर्ण अभियान सफल हुआ।
मौसम और परिस्थितियों ने दी कड़ी परीक्षा
अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार के अनुसार, जगतसुख पीक का यह मार्ग नए पर्वतारोहियों के लिए अत्यंत कठिन था। खराब मौसम, सीमित दृश्यता और ग्लेशियरों में छिपी दरारों ने लगातार बाधाएँ डालीं। फिर भी दल ने बिना किसी बाहरी मदद के आत्मनिर्भर होकर यह चढ़ाई पूरी की। यह अभियान व्यावसायिक पर्वतारोहण से बिल्कुल अलग था — यहाँ कोई तय मार्ग या सपोर्ट स्टाफ नहीं था। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता रही।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली सराहना
इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना प्राप्त हुई। स्पेन के प्रसिद्ध पर्वतारोही और पूर्व वर्ल्ड कप कोच टोती वेल्स ने कहा कि – “इन युवाओं ने, जिन्होंने कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है। यह साबित करता है कि सही प्रशिक्षण और अवसर मिलने पर भारत के ग्रामीण और आदिवासी युवा भी विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं।”
सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स और ‘छुपा रुस्तम पीक’ की चढ़ाई
‘विष्णु देव रूट’ के अलावा टीम ने दूहंगन घाटी में सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स भी खोले। सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि रही एक पहले कभी न चढ़ी गई 5,350 मीटर ऊँची चोटी की सफल चढ़ाई, जिसे उन्होंने ‘छुपा रुस्तम पीक’ नाम दिया।
इस पर चढ़ाई के मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma)’ नाम दिया गया — जो हल्दी का वैज्ञानिक नाम है और भारतीय परंपरा में सहनशक्ति व उपचार का प्रतीक माना जाता है।
नेतृत्व और सहयोग
इस ऐतिहासिक अभियान का नेतृत्व स्वप्निल राचेलवार ने किया, उनके साथ राहुल ओगरा और हर्ष ठाकुर सह-नेता रहे। जशपुर के पर्वतारोही दल में रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक शामिल थे।
अभियान को प्रशासनिक समर्थन डॉ. रवि मित्तल (IAS), रोहित व्यास (IAS), शशि कुमार (IFS) और अभिषेक कुमार (IAS) ने दिया। तकनीकी सहायता डेव गेट्स (USA), अर्नेस्ट वेंटुरिनी, मार्टा पेड्रो (स्पेन), केल्सी (USA) और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने प्रदान की।
अभियान का डॉक्यूमेंटेशन ईशान गुप्ता की कॉफी मीडिया टीम द्वारा किया गया।
सहयोगी संस्थानों की भूमिका
इस मिशन को सफल बनाने में कई संस्थानों ने सहयोग दिया, जिनमें पेट्ज़ल, एलाइड सेफ्टी इक्विपमेंट, रेड पांडा आउटडोर्स, रेक्की आउटडोर्स, अडवेनम एडवेंचर्स, जय जंगल प्रा. लि., आदि कैलाश होलिस्टिक सेंटर, गोल्डन बोल्डर, क्रैग डेवलपमेंट इनिशिएटिव और मिस्टिक हिमालयन ट्रेल शामिल रहे।
“भारत का भविष्य गाँवों से निकलेगा” – मुख्यमंत्री विष्णु देव साय
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस उपलब्धि पर टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह केवल पर्वतारोहण नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक है कि भारत के गाँव और आदिवासी क्षेत्र भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक सकते हैं। उन्होंने कहा, “भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।”
 

 



