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पंडित श्याम सुंदर महाराज के लिखे ग्रंथ कल्पतरु से पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया में हो रही भागवत कथा

प्रेस से चर्चा में पंडित श्याम सुंदर बोले-अधिकांश कथाओं में कल्पतरु ग्रन्थ का आश्रय

@सुशील तिवारी 9926176119

दीपका के प्रगतिनगर स्थित श्रमवीर स्टेडियम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। कथा के पांचवें दिन कथा व्यास ग्वालियर निवासी पं. श्याम सुंदर पाराशर महाराज ने प्रेस से चर्चा में कहा कि वे 16 वर्ष की आयु से श्रीमद् भागवत कथा का वाचन कर रहे हैं और वृंदावन से दीक्षा प्राप्त करने के बाद यह सब परमात्मा की कृपा से संभव हो पाया है। पं. पाराशर महाराज ने कहा कि आज देश-विदेश में होने वाली अधिकांश कथाओं का आधार ‘कल्पतरु भागवत ग्रन्थ’ है। इसी ग्रंथ के आधार पर पाकिस्तान में उर्दू संस्करण तथा ऑस्ट्रेलिया में शिखा देवी द्वारा अंग्रेजी संस्करण तैयार किया गया है, जिस पर कार्य निरंतर जारी है।

कथाव्यास ने स्पष्ट कहा कि व्यास पीठ से मनमुखी या काल्पनिक कथन नहीं होने चाहिए, बल्कि केवल वेदव्यास की वाणी का ही अनुमोदन होना चाहिए। उन्होंने चिंता जताई कि आज हिंदू हित की बात करने वाले को सांप्रदायिक करार दे दिया जाता है, जबकि ऋषि-मुनियों का ज्ञान-विज्ञान नवयुवकों तक पहुंचना समय की आवश्यकता है।

तमसो मा ज्योतिर्गमय का उल्लेख करते हुए पं. पाराशर महाराज ने कहा कि दीप प्रज्ज्वलन की परंपरा भारतीय ऋषि संस्कृति की देन है, जिसे तुष्टिकरण की नीति और विधर्मी सोच से क्षति पहुंची है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी मानसिक गुलामी की चपेट में है, ऐसे में नवयुवकों के लिए श्रीमद् भागवत का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हो गया है।

कथा व्यास ने कहा कि यह हमारी विडंबना है कि विदेशी लोग भारतीय संस्कृति और संस्कारों को अपना रहे हैं, जबकि हमारी नई पीढ़ी अपनी जड़ों को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रही है। समय रहते यदि युवाओं में संस्कृति-बोध नहीं जागा तो इसके परिणाम भविष्य में घातक हो सकते हैं।

पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए गुरुकुल परंपरा पर चिंता जताई आगे कहा कि कभी देश में लाखों गुरुकुल हुआ करते थे, आज गिनती के ही गुरुकुल शेष रह गए हैं। इससे ऋषि-मुनियों की प्राचीन परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को सत्संग का महत्व समझाएं, ताकि ज्ञान का प्रकाश उनके जीवन में प्रज्वलित हो और वे अपनी सनातन संस्कृति से विमुख न हों।

प्रेस से चर्चा के दौरान श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग का उल्लेख करते हुए पं. श्याम सुंदर पाराशर महाराज ने बताया कि पूर्व जन्म में यशोदा माता और नंद बाबा ने तपस्या कर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गोद में खिलाने की मनोकामना मांगी थी। उसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान ने उनके यहां अवतार लिया।
अंत में कथाकार पंडित श्याम सुंदर महाराज ने पत्रकारों को शुभ आशीष वचन देकर प्रसाद वितरण किया।

sushil tiwari

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