रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा की भारी बहुमत से जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है। इस दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह सब पर भारी नजर आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के अन्य राष्ट्रीय नेताओं के बीच गहरी पैठ बताई जा रही है। पूरे चुनाव के दौरान उन्हें पूरी तवज्जो मिलती रही। उनके पास 15 वर्षों तक सरकार चलाने का अनुभव भी है।
सीएम पद की दौड़ में केंद्रीय राज्यमंत्री विष्णुदेव साय, रेणुका सिंह के अलावा पहली बार विधायक बने आइएएस ओपी चौधरी, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अरुण साव, रमन कैबिनेट की मंत्री रह चुकी लता उसेंडी का नाम भी शामिल हैं। हालांकि डा. रमन के सामने इन सभी का कद हल्का पड़ रहा है। चौधरी और साव पहली बार विधायक बने हैं। रमन सिंह के अनुभवों का लाभ भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में भी मिल सकता है। इधर प्रदेश भाजपा प्रभारी ओम माथुर कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री का निर्णय भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में तय होगा।
इनका नाम भी चर्चा में –
मुख्यमंत्री की दौड़ में भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय का नाम भी चर्चा में हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पकड़ भी बेहतर मानी जा रही है। इधर भाजपा संगठन ने यह साफ कर दिया है कि संसदीय बोर्ड की बैठक में विभिन्न नामों पर प्रस्ताव रखा जाएगा, वहीं राजधानी में शक्ति प्रदर्शन या लांबिंग को तरजीह नहीं मिलेगी। केंद्रीय पर्यवेक्षक शीघ्र ही छत्तीसगढ़ आएंगे। विधायक दलों की बैठक होगी। इसमें विभिन्न नामों पर रायशुमारी की जाएगी।
आदिवासी मुख्यमंत्री की भी मांग –
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भाजपा को पहली बार छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक सीटें मिली है। 54 सीटों में से आदिवासी क्षेत्रों से 16 सीट भाजपा के खाते में हैं, बाकी सामान्य, ओबीसी व अन्य सीटें हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ से आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी तेज हो चली है। अब तक के इतिहास पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ में भाजपा-कांग्रेस दोनों पार्टियों ने आदिवासी मुख्यमंत्री को ज्यादा प्राथमिकता में नहीं रखा है।
अन्य राज्यों के जैसे शक्ति प्रदर्शन की स्थिति नहीं –
छत्तीसगढ़ में भाजपा के विधायकों में अनुशासन की झलक साफ दिखाई दे रही है। राजस्थान व मध्यप्रदेश में हालात अलग है। यहां मुख्यमंत्री पद के लिए पसंदीदा चेहरे पर विधायकों का समर्थन खुलकर बाहर आ रहा है। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के आवास पर विधायकों का शक्ति प्रदर्शन भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ में ऐसी स्थिति दिखाई नहीं दे रही है। यहां अभी तक विधायकों ने खुले तौर पर किसी भी नेता का नाम नहीं लिया है। ऐसे में यह साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय पर विधायकों को ज्यादा परेशानी नहीं होगी।