हिरासत में मौत का मामला: हाईकोर्ट ने कहा – राज्य की जिम्मेदारी, परिजनों को मुआवजा देने का आदेश

रायपुर। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के अर्जुनी थाने में एक युवक की पुलिस हिरासत में हुई संदिग्ध मौत के मामले में हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार को मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला मानते हुए इसे कस्टोडी में हुई क्रूरता का उदाहरण बताया और कहा कि यह घटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
राज्य सरकार को कोर्ट का निर्देश
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जब किसी नागरिक की मौत पुलिस की निगरानी में होती है, तो यह जिम्मेदारी राज्य की होती है कि वह मृत्यु के कारणों को पारदर्शिता के साथ सामने लाए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह न केवल संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि यह पीड़ित के आत्मसम्मान और जीवन के अधिकार की अनदेखी भी है।
क्या है मामला
मृतक की पत्नी दुर्गा देवी कैठोलिया की याचिका के अनुसार, उनके पति दुर्गेंद्र कैठोलिया को 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 31 मार्च को अदालत में पेश किए जाने के बाद उन्हें वापस थाने ले जाया गया, जहां कुछ ही घंटों के भीतर उनकी मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 चोटों के निशान पाए गए और मौत का कारण दम घुटना बताया गया।
परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप
परिवार का आरोप है कि पुलिस ने हिरासत में रहते हुए दुर्गेंद्र को यातनाएं दीं, जिसके कारण उनकी मौत हुई। परिजनों को शुरुआत में यह जानकारी दी गई थी कि वे बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन बाद में पता चला कि उनकी मौत पहले ही हो चुकी थी। शव पर गंभीर चोटों के निशान देखकर परिजनों ने जमकर विरोध किया और उच्च अधिकारियों से शिकायत की।
मुआवजे का आदेश
कोर्ट ने आदेश दिया कि मृतक की पत्नी को तीन लाख रुपये और उनके माता-पिता को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। यह राशि आठ सप्ताह के भीतर अदा करनी होगी, अन्यथा उस पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा।
फैसले का महत्व
हाईकोर्ट का यह फैसला पुलिस हिरासत में हो रही मौतों के मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि राज्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए जवाबदेह है।