
बिलासपुर। वन विभाग द्वारा असम से चार और मादा वन भैंसा लाने पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने आगामी आदेश तक रोक लगा दी है। राज्य शासन को इस संबंध में जवाब पेश करने के निर्देश दिए हंै। याचिकाकर्ता ने कहा है कि वन विभाग ने तीन वर्ष पूर्व अप्रैल 2020 में असम के मानस टाइगर रिजर्व से एक नर और एक मादा सब एडल्ट को पकड़कर बारनवापारा अभयारण्य में 25 एकड़ के बाड़े में रखा है। वन विभाग द्वारा इन्हें आजीवन रखा जाना है। योजना है कि वन भैंसों को बाड़े में रखकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा।
वन विभाग की इस योजना का विरोध करते हुए रायपुर निवासी नितिन सिंघ्ावी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसके अनुसार वन भैंसा वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम के शेड्यूल एक का वन्य प्राणी है। पूरी दुनिया में छत्तीसगढ़ के वन भैंसों का जीन पूल, असम के वन भैंसा और छत्तीसगढ़ के वन भैंसे के जीन का मिलान करने से छत्तीसगढ़ के वन भैसों के जीन पूल की विशेषता बरकरार नहीं रखी जा सकेगी। छत्तीसगढ़ में जब वन भैंसे लाने के लिए विभागीय अधिकारियों ने योजना बनाई थी कि असम से मादा वन भैंसा लाकर उदंती के नर वन भैसों से नई जीन पूल तैयार कराएंगे। मामले की सुनवाई एक्टिंग चीफ जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डिवीजन बेंच हुई।
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने दो बार दर्ज कराई है आपत्ति –
याचिकाकर्ता ने बताया कि वन विभाग की इस योजना का भारत सरकार की सर्वोच्च संस्था भारतीय वन्यजीव संस्थान ने दो बार आपत्ति दर्ज की थी। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बताया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों का जीन पूल विश्व में शुद्धतम है। सीसीएमबी नामक डीएनए जांचने वाले संस्थान ने भी कहा है कि असम के वन भैसों में भौगोलिक स्थिति के कारण आनुवंशिकी फर्क है। सर्वोच्च न्यायालय ने टीएन गोदावरमन नामक प्रकरण में आदेशित किया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की शुद्धता बरकरार रखी जाए।
अभी तक नहीं कराई है इको सूटेबिलिटी स्टडी –
असम के वन भैंसा दलदली इलाके, तराई के नीचे के जंगलों में अमूमन साल भर सामान्य और कम तापमान में रहते हैं। जबकि छत्तीसगढ़ के वन भैसें कठोर भूमि पर और अत्यधिक गर्मी में रहते हैं। इन्हीं सब कारणों से एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी) ने सैद्धांतिक सहमति देते वक्त असम वन विभाग को कहा था कि वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य में भेजने के पूर्व इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। बाद में एनटीसीए ने असम वन विभाग को याद भी दिलाया कि वन भैसों के संबंध में इको सूटेबिलिटी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। इसके बावजूद भी छत्तीसगढ़ वन विभाग असम से दो वन भैंसा ले आया है।
अधिनियम की धारा 38 का उल्लंघन –
याचिका के अनुसार असम का मानस टाइगर रिजर्व, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी के अधीन आता है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 38-ओ के तहत टाइगर रिजर्व के अंदर एनटीसीए की बिना अनुमति के कोई जानवर को नहीं पकड़ा जा सकता। एनटीसीए की तकनीकी समिति ने असम के वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में पुनर्वासित करने के पूर्व परिस्थितिकी अर्थात इकोलाजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट मंगवाई थी। इससे यह पता लगाया जा सके कि असम के वन भैंसा छत्तीसगढ़ में रह सकते हैं कि नहीं। परंतु छत्तीसगढ़ वन विभाग बिना इकोलाजिकल सूटेबिलिटी अध्यन कराये और एनटीसीए को रिपोर्ट किये वन भैसों को लेकर आ गया है।