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बड़ी खबर : ऐसा कभी नहीं सुना पंडितों ने जाति वर्ण की व्यवस्था की, शंकराचार्य जी का RSS प्रमुख के बयान पर आया रिएक्शन

रायपुर। RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर ज्योतिष्ठपीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने विपरीत टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। स्वामी का कहना है कि बहुत अनुभवी और इतने बड़े संगठन के नेता ने किस अनुसंधान के तहत यह बयान दिया, इस पर वे कुछ नहीं कहना चाहते। ऐसा कभी नहीं सुना कि पंडितों ने जाति वर्ण की व्यवस्था की। भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस सृष्टि के वही रचयिता हैं, चार वर्ण भगवान ने ही बनाए हैं, सृष्टि का संचालन परमात्मा ही करते हैं। सभी जाति, वर्ग विशेष का अपना महत्व है, कोई ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा नहीं है। सभी के सहयोग से दुनिया चल रही है।
साधु-संतों का राजनीति में प्रवेश पर कहा कि युगों-युगों से राजगुरु, ऋषि-मुनि राज्य के बेहतर संचालन और जगत कल्याण के लिए राजा-महाराजा को सलाह देते आ रहे हैं। सलाह देना गलत नहीं है, साधु-संत सलाह दें लेकिन यदि स्वयं राजनीति में जाएं तो वे धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकते।

आदिवासी-हिंदू नहीं, पर हो रही राजनीति –

छत्तीसगढ़ के एक मंत्री के बयान आदिवासी हिंदू नहीं से उपजे विवाद पर कहा कि यह बयान राजनीति से प्रेरित है। आदिवासी भी प्रकृति पूजा करते हैं और सनातनी भी पीपल, बरगद, तुलसी, आंवला, नदी, पहाड़ को पूजते हैं। आदिवासी, हिंदू ये मुद्दा केवल राजनीतिवश उठाया जाता है। सभी सनातनी भाई-भाई है।

श्रीरामचरितमानस की प्रतियां जलाने पर बोले –

श्रीरामचरितमानस की प्रतियां जलाने से उठे विवाद पर बोले कि सैकड़ों साल से श्रद्धालु मानस पाठ के संदेशों से प्रेरित हो रहे हैं, मानस ग्रंथ के किसी श्लोक में विद्वेष फैलाने की बात नहीं कही गई है, देश में कुछ लोग बेहूदी राजनीति कर रहे हैं, मानस की प्रतियां जलाना गलत है, ऐसे लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए। देश के सभी साधु-संत सनातन धर्म की रक्षा के लिए अलख जगा रहे हैं, संतों में कोई मतभेद नहीं है। सभी का उद्देश्य एक ही है कि भारत हिंदू राष्ट्र और विश्व गुरु के रूप में स्थापित हो।

श्रीराम की मूर्ति देश के कोने-कोने में ले जाएं

दंडकी नदी के पवित्र शालिग्राम पत्थर से बनाई जाने वाली श्रीराम की मूर्ति का विरोध एक आचार्य द्वारा किए जाने पर कहा कि विरोध करने वालों की भी श्रीराम के प्रति आस्था है। शालिग्राम पत्थर पर चोट पहुंचने से हो सकता है उनकी भावनाएं आहत हों। होना तो यह चाहिए था कि पहले मूर्ति का निर्माण कर लिया जाता और उसके बाद देश के कोने-कोने तक मूर्ति को दर्शन के लिए ले जाकर प्रतिष्ठापित किया जाता।

Ashok Kumar Sahu

Editor, cgnewstime.com

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