
कबीरधाम। परमपूज्यपाद अन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर धर्मसम्राट जगद्गुरु श्री शंकराचार्य भगवान स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती महाराज का 02 दिवसीय प्रवास पर धर्मराजधानी कवर्धा आगमन हुआ, जहा शंकराचार्य जी ने भक्तो को दिक्षा, दर्शन, आशीर्वचन और जिज्ञासा प्रश्नों के उत्तर दिए।
वही, शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के प्रमुख ट्रस्टी चन्द्रप्रकाश उपाध्याय ने बताया कि शंकराचार्य जी का 2 दिवसीय प्रवास पर कवर्धा आगमन हुआ था।शंकराचार्य जी के लिए कवर्धा प्रोफेसर कालोनी स्थित रघुराज सिंह ठाकुर के निज निवास पर उनके पूरे कवर्धा प्रवास के दौरान विश्राम की व्यवस्था रखा गया था। यही से पूज्य शंकराचार्य जी का अन्य स्थानीय कार्यक्रम संचार किया जा रहा था, जिसमें प्रथम दिवस पर रघुराज सिंह ठाकुर के निज निवास पर सुबह चंद्रमौलेश्वर भगवान की पूजा अर्चना के पश्चात भक्तो को सुबह 07 बजे दर्शन दीक्षा सुबह 11 बजे ग्राम कोशमंदा पहुंचे। वही, श्री राजपुत के निवास में पदुकापुजन व आयोजित श्रीमद्भागवत में आशीर्वचन दिए। शंकराचार्य जी ने दोपहर 3:30 बजे ग्राम जुनवानी लिमो व ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद के सहयोग से आयोजित पंच कुण्डली रुद्र महायज्ञ और श्रीमद्भागवत कथा स्थल पहुंचे व भक्तो को दर्शन दे कर आशीर्वचन दिया।
शंकराचार्य महाराज का प्रवचन –
शंकराचार्य जी महाराज ने भगवान का अर्थ सभी भक्तों को समझाया उन्होंने बताया कि जैसे बलवान के पास बल होता हैं। धनवान के पास धन होता हैं उसी तरह भगवान के पास भग होता हैं। भग शब्द का अर्थ योनि (लिंग) होता हैं यानी भगवान यानी जिसके पास योनि हो। योनि का कार्य उत्पन्न करना होता हैं हम सबका आविर्भाव योनि से हुआ है। अब इसका मतलब हैं कि जिसके पास उतपन्न करने की क्षमता हो उसी का नाम ‘भगवान’ हैं, जिसने आपको और हमको उपजाया उसी का नाम भगवान हैं। भगवान नही होते तब हमारा अस्तित्व ही नही होता। भगवान ही हमारे अस्तित्व का आधार हैं। 06 चीजों में सबसे पहला ऐश्वर्य, यानी कि सबका शासन करने की शक्ति। उसके बाद धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य आते हैं। सब समग्रता के साथ उपस्थित होती है, उसी वस्तु का नाम भग होता है और भग जिसके पास हो उसी का नाम ‘भगवान’ हैं।
अक्सर भगवान के अस्तित्व को लेकर सवाल उठते हैं कई कहते हैं कि बिना देखे हम नहीं मान सकते कि भगवान है। समस्या तो यह है कि जिसे नहीं मालूम कि भगवान मतलब क्या है ? वह कहता है कि भगवान दिखा दो। यह सब बातें तो बाद की है पहले यह जानना आवश्यक है भगवान माने क्या ? भगवान शब्द से ही इसका अर्थ निकल कर सामने आ जाता है। धन जिसके पास है वो धनवान, भाग्य जिसके पास है वो भाग्यवान, बल जिसके पास है वो बलवान, उसी तरह भग जिसके पास है वो भगवान।
भगवान समग्र ऐश्वर्या वाला है, सोना, चांदी, रुपया, कपड़ा, मकान, खेती, अनाज, रूप, रंग औऱ गुण सब थोड़ा थोड़ा हमारे पास भी है। समस्या यह है कि जितनी चीजें गिनाई यह सब कुछ थोड़ा-थोड़ा है। यह थोड़ा-थोड़ा संपूर्ण संसार पर भी निर्भर करता है, कुछ इसके पास तो कुछ उसके पास तो कुछ किसी और के पास होता हैं। इंसान को इस बात का दुख नहीं होता कि उसके पास कुछ है उसे इस बात का दुख होता है कि उससे ज्यादा किसी और के पास क्यों है। ऐश्वर्या हमारे पास सीमित मात्रा में है। इसलिए हम भगवान नहीं हो सकते। भगवान वह है, जिसके पास संसार का सारा ऐश्वर्या हो, वो ‘भगवान’ हैं।
इंसान सत्कर्म करने वाला होता है लेकिन कभी-कभी उससे गलत काम भी हो जाता है जानते हुए भी कई बार दोष और पाप हो जाता है। धर्म हमारे पास है लेकिन वह सीमित मात्रा में है लेकिन भगवान समग्र धर्म के मालिक हैं यश भी हमारा हैं, संपत्ति भी थोड़ी बहुत है और ज्ञान की बात कहे तो उसे जितना ही जान लो वह कम है। वही, कम जानते हैं, गुमान होता है कि हमारे पास ज्यादा जानकारी है और जब ज्यादा जान लेते हैं तो पता चलता है कुछ है ही नहीं। भगवान के पास सम्पूर्ण ज्ञान हैं। हमारा ज्ञान सीमित और भगवान का ज्ञान असीमित होता है।
वैराग्य की परिभाषा देते हुए कहते है कि हम अपना आपा नही छोड़ सकते हैं। घर संसार मां बाप का गोत्र तक त्याग देते हैं परंतु आपे की बात आती है तो नहीं छोड़ सकते हैं। भगवान अपना आपा छोड़ कर बैठे हैं। हम शरीर के प्रति अपना अभिमान नहीं छोड़ पाते और भगवान वह तो विराट हैं। भगवान के अंदर विराट ब्रह्मांड समाया हुआ हैं। वह तो यह नहीं कहते कि मैं, लेकिन इंसान के अंदर मैं की भावना जरूर होती है। इंसान ने अपने शरीर में अहम बुद्धि कर ली हैं इसलिए इंसान का रूप मिला है लेकिन भगवान ने ऐसा नहीं किया है तो उन्हें कहां से देखा जाएगा।
यह भागवत कथा आपको तब समझ में आएगी, जब आप भगवान के ऐश्वर्य को समझ जाएंगे। कथा में हमने जान कि श्री कृष्ण के रूप में भगवान ने जन्म लिया। और प्रतिज्ञा की कि जब-जब कोई किसी सज्जन को सताएगा। सज्जन की पीड़ा को हर लूंगा और दुर्जन को दंड दूंगा। अत्याचार हम सहन कर लेते हैं, जिस भगवान ने हमें बनाया है, वह सहन नहीं कर पाते और अवतार धारण करके अत्याचारी का अंत कर देते हैं। कंस और हिरण्यकश्यप ने भी अत्याचार किया। भगवान ने अवतार लेकर इनका विनाश कर दिया। इसलिए जब जब अत्याचार होता है भगवान अवतार लेते हैं। कंस ने पिता तक को कारागार में डाल दिया और भगवान ने उनका विनाश किया। अत्याचारी राज कंस का अंत भी भगवान ने कर दिया।
भगवान की लीलाएं अपरम्पार है। भागवत जी में भगवान के ऐश्वर्य, सौंदर्य और माधुर्य का भी वर्णन हैं। भगवान की लीला के अनेक चरित्र हैं, भगवान मिट्टी खाते है। इससे ये समझ आता है ये दिखावा नही हैं, वे बाल लीला करते हैं, ताकि लोगों को यकीन हो जाए कि यह सामान्य बालक ही है। शंकराचार्य महाराज ने कृष्ण लीला के एक सुंदर चरित्र का वर्णन करते हुए उस लीला को याद किया जब बलराम और साथियों के साथ मिलकर श्री कृष्ण खेल खेल रहे थे और उन्होंने मिट्टी खा ली थी। वह मिट्टी श्रीकृष्ण ने अपने मुंह में डाल कर रखी थी उसे पेट के अंदर नहीं ले गए थे। उसूलों के पक्के बलराम ने शिकायत यशोदा मां से कर दी और इसमें साथियों ने भी उनका साथ दिया। यशोदा मां के प्रकोप को देखते हुए श्री कृष्ण ने अपना मुंह खोला।
गुरु जी ने बताया था कि यह घटना इसलिए हो गई क्योंकि यशोदा का कोप सूर्य किरण बन गया था। यशोदा के कोप की रवि रश्मि से श्री कृष्ण चंद्र का मुख खुल गया व कमल की तरह खिल गया। क्योंकि जब सूर्य उदित होता है, तब कमल को खिलना ही पड़ता है। यशोदा मां उन्हें रंगे हाथों पकड़ लेती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि मां आप मुझे जानती नहीं है, माता कहती है मुंह खोलो और जब श्री कृष्ण मुंह खोलते हैं तो सारा संसार मां को श्री कृष्ण के मुख में दिख जाता है।
विद्वानों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने यशोदा को अपने मुख में इसलिए संसार के दर्शन कराएं थे, क्योंकि कुछ देर पहले उन्होंने कहा था कि मां मैंने मिट्टी नहीं खाई। श्री कृष्ण को मां का डर नहीं था। इस बात का डर था कि उनके ऊपर झूठ बोलने का दोष ना लग जाए। लोग भागवत जी का प्रमाण देकर झूठ बोलने लगेंगे कि स्वयं भगवान ने झूठ बोला था। श्रीकृष्ण ने ऐसा कर इस बात का खंडन किया कि उनके अंदर ही सबकुछ है, वह बाहर से कुछ कैसे खा सकते हैं। यहां पर उन्होंने अपना ऐश्वर्या प्रकट किया।
दर्शन, दीक्षा सहित पदुकापुजन साथ ही पत्रकारों से चर्चा –
शुक्रवार सुबह पूज्यगुरुदेव शंकराचार्य जी ने सुबह भगवान श्री चंद्रमौलेश्वर जी की पूजा अर्चना की। सुबह 7 बजे रघुराज सिंह ठाकुर व परिजनों के द्वारा पदुकापुजन, दीक्षा व दूर दूर से आये दर्शनार्थीयो को दर्शन आशीर्वचन दिया। ततपश्चात ग्राम दोर्जरी में पदुकापुजन, दर्शन व आशीर्वचन पश्चात सुबह 10 बजे श्री ठाकुर के निवास पर पहुंचे जिला के प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व वेब मीडिया के पत्रकारों से चर्चा कर 12 बजे ग्राम जुनवानी के लिए प्रस्थान किया।
उमंग पांडेय द्वारा प्रोफेसर कॉलोनी से ग्राम जुनवानी तक भव्य बाइक रैली –
शंकराचार्य जी के कृपापात्र शिष्य उमंग पांडेय द्वारा श्री ठाकुर के निज निवास से लेकर ग्राम जुनवानी, लिमो तक भव्य बाइक रैली निकाली गई। रैली के आगे-आगे डीजे की धुन पर “जय हो जय हो धर्म ध्वज वन्दे” स्वर पर जय जय श्री राम के नारे से रैली में शामिल युवाओं द्वारा नारा लगाते रहें। प्रत्येक बाइक पर भगवा ध्वज लहराते हुए आगे आगे शंकराचार्य महाराज का काफिला पीछे पीछे यह रैली ग्राम जुनवानी के यज्ञ स्थल पर समाप्त हुई।
वही शंकराचार्य जी ने यज्ञस्थल पहुंच के भक्तो को दर्शन देकर आशीर्वचन दिया। वही, शाम 4 बजे बेमेतरा जिला के ग्राम करमु के लिए प्रस्थान किया। यह सम्पूर्ण जानकारी ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य बद्रिकाश्रम हिमालय के मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने दी हैं।
इस आयोजन में मुख्यरूप से धर्मालंकार डॉ पवन कुमार मिश्र, अतुल देशलहरा, पूर्व विधायक डॉ सियाराम साहू, पूर्व विधायक मोतीराम चन्द्रवंशी, जिला पंचायत सदस्य राम कुमार भट्ट, कांग्रेस जिला अध्यक्ष नीलकंठ चन्द्रवंशी, कांग्रेस नेता बंटी तिवारी, सतीश जैन, धनराज उपाध्याय, मंझला उपाध्याय, बाबु लाल चंद्राकर, कांग्रेस नेता राजेश शुक्ला, धर्मध्वज वीर दुर्गेश देवांगन सहित हजारो की संख्या में श्रद्धालु व श्रोतागण उपस्थित रहे।