
रायपुर। छत्तीसगढ़ में पारंपरिक त्योहारों का सिलसिला जारी है, और सोमवार को छेरछेरा पर्व की धूम प्रदेश भर में देखने को मिली। इस खास पर्व पर ग्रामीण इलाकों में बच्चे और लोग घर-घर जाकर धान और फसल मांगते नजर आए। जशपुर, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, बेमेतरा समेत कई जिलों में यह त्योहार धूमधाम से मनाया गया।
क्या है छेरछेरा पर्व की मान्यता? –
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन किसान अपने खेतों से फसल काटकर उसे भंडार गृह में सुरक्षित रख लेते हैं और खेती-किसानी के कामों से निवृत्त होते हैं। यह त्योहार प्रदेश की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। बच्चे किसानों के घर जाकर ‘छेरछेरा मांगते हैं’, और बदले में किसान उन्हें मुट्ठी भर धान या फसल देते हैं।
मुट्ठी भर अनाज देने की प्रथा –
इस पर्व पर प्रदेश की महिलाएं अपने घर के कोठी में रखे धान को टोकरी में निकालकर रखती हैं। जब कोई टोली ‘छेरछेरा पुन्नी’ मांगने आती है, तो उन्हें धान दान किया जाता है। यह परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पूरी जीवंतता के साथ निभाई जा रही है। हालांकि, शहरी इलाकों में यह प्रथा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
परंपराओं को संजोए रखने का संदेश –
छेरछेरा पुन्नी छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और खेती-किसानी की जीवनशैली का प्रतीक है। यह त्योहार आज भी परंपराओं को जीवित रखे हुए है और समाज में सहयोग और समृद्धि का संदेश देता है।